हेल्थ डेस्क: टीबी भारत की एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। इस बीमारी से प्रत्येक तीन मिनट में दो भारतीय और रोजाना 1,000 लोगों की जान चली जाती है। विश्व में भारत पर टीबी का बोझ सबसे अधिक है।
देश ने टीबी उन्मूलन को प्राथमिकता के तौर पर लिया गया है। इसका उद्देश्य टीबी के नए मामलों में 95 प्रतिशत की कमी करना और टीबी से मृत्यु में 95 प्रतिशत की कमी लाना है।
ज्यादातर लोग सोचते है कि टीबी और क्षय रोग एक ही होता है। इस अंधविश्वास के कारण कई लोग की मानसिकता में भी फर्क पड़ता है। जानिए इन दोनों के बीच क्या फर्क है।
ज्यादातर लोग जो टीबी (क्षयरोग) के बैक्टीरिया वाले माहौल में सांस लेते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी अच्छी होती है कि वे बैक्टीरिया से लड़ने में सक्षम होते हैं और इसे मल्टीप्लाई होने से रोक लेते हैं। इसे टीबी संक्रमण कहा जाता है।
यह जरूरी नहीं कि जो लोग टीबी संक्रमित होते हैं, उन्हें क्षयरोगी कहा जाए। दूसरी ओर, अगर व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बैक्टीरिया को मल्टीप्लाई होने से रोक नहीं पाती है, तो उसे एक्टिव टीबी हो जाता है। इसे हम टीबी की बीमारी कहते हैं।
इंडियन मेडिकल एशोसिएशन (आईएमए) के मनोनीत अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया, “टीबी से संक्रमित सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों को ही टीबी की बीमारी होती है। ऐसे लोग जिन्हें एचआईवी, डायबिटीज मेलिटस, पोषण की कमी होती है या वे, जिनका एंटी-कैंसर या कॉर्टिकास्टेरॉइड जैसा इम्युनोसप्रेसेंट दवाओं से इलाज चल रहा होता है, उनके टीबी से संक्रमित होने पर यह बीमारी होने का खतरा कहीं अधिक होता है।”
उन्होंने कहा, “टीबी हवा के जरिए वह व्यक्ति फैला सकता है, जिसे टीबी की बीमारी हुई है। एक मरीज हर साल 10 या इससे अधिक लोगों को संक्रमित कर सकता है। आईएमए साल भर में एक लाख टीबी मरीजों को नोटिफाई करने में सफल रहा है। इसका मतलब है कि हम देश में 10 लाख नए मरीज होने से रोक पाने में सफल रहे।”