रावण के पिता ऋषि तो माता असुर कुल से थीं। इन दोनों का मिलना विधि का विधान था। ऐसा नहीं होता तो रावण का जन्म ही नहीं हुआ होता। ऐसे में राम कथा में रावण की चर्चा ही नहीं होती।
त्रेतायुग में रावण एक ऐसा दैत्य था जिसमें ब्राह्मण और दानव का दोनों का अंश था। यानि इन दोनों के अंश से उसकी उत्पत्ति हुई। इसलिए वह न केवल प्रकाण्ड विद्वान बल्कि दैत्य कुल का अंश होने के कारण दानवों की तरह भी था।
रावण के जन्म की कहानी भी काफी विचित्र है। इस पौराणिक कथा का विस्तार से उल्लेख हिंदू धर्म ग्रंथों में मौजूद है। दरअसल हुआ यूं था कि एक बार शाम के समय रावण के पिता ऋषि विश्रवा पूजा-पाठ कर रहे थे।
उसी समय रावण की मां कैकसी के मन में पति से संसर्ग की इच्छा हुई। वह ऋषि विश्रव के पास पहुंची और उनसे प्रार्थना करने लगी।
यह सुनकर तपस्वी ऋषि विश्रवा ने अपनी पत्नी को बहुत समझाया किंतु वह हठ करने लगी अंत में विवश होकर ऋषि विश्रवा को पत्नी की इच्छा का सम्मान करते हुए ऐसा करना पड़ा।
कुछ समय बाद वह गर्भवती हो गईं। लेकिन ऋषि विश्रवा ने कैकसी को समझाते हुए कहा कि, ‘ मैंने रोका था कि यह आसुरी बेला है।
इसमें संसर्ग नहीं करना चाहिए’ लेकिन तुम नहीं मानी, अब तुम्हारे गर्भ से एक राक्षस जन्म लेगा मेरा अंश होने के कारण तो विद्वान भी होगा लेकिन असुर भी। इस तरह रावण का जन्म हुआ