आध्यात्मिक विकास किसी स्थान विशेष पर नहीं होता, जैसे कि किसी धर्मस्थान पर, या किसी नदी के किनारे पर,या किसी जंगल में। यदि हम आध्यात्मिक रूप से विकसित होना चाहते हैं, तो वो हम किसी भी स्थान पर रहते हुए हो सकते हैं।
कुछ आध्यात्मिक परंपराओं में लोग जीवन और इससे जुड़ी चीज़ों को त्याग कर केवल अपनी आध्यात्मिक यात्रा की ओर ही ध्यान देते हैं, परंतु हमें चाहिए कि हम संपूर्ण इंसान बनें, जिसमें हम शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक,और आध्यात्मिक रूप से विकसित हों।
वास्तव में आत्मा के स्वास्थ्य पर ही शरीर, मन, और बुद्धि का स्वास्थ्य निर्भर करता है। पूर्वी देशों में कहा जाता है कि जंगल में मोर नाचा, किसने देखा? अर्थात, मोर के उस नृत्य का क्या लाभ हुआ? अगर उसे किसी ने देखा ही नहीं। जिस प्रकार एक फूल खिलकर दूसरों को खुशबू देता है, ठीक उसी प्रकार हमें भी दूसरों के जीवन में खुशियां लानी चाहिए।
इसके लिए हमें अपने-अपने समाज में ही रहना चाहिए तथा जीवन के इस पहलू को नकारना नहीं चाहिए। एक बार यह जान लेने के बाद कि हम आत्मा हैं, हमें अपनी आत्मिक शक्ति के विकास में समय लगाना चाहिए।
ऐसा करने के लिए हमें कुछ आध्यात्मिक लक्ष्य तय करने होंगे। दूसरी ओर, अगर हम अपना समय अनिश्चित कार्यों में बर्बाद करेंगे, बिना जानें कि हम कहां जा रहे हैं, तो हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में बहुत मुश्किल होगी। आध्यात्मिक क्षेत्र में हमारे लक्ष्य हैं ध्यान-अभ्यास में समय देना तथा अपने अंदर अच्छे गुणों का विकास करना। आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए हमें यह जानना चाहिए कि वास्तव में जरूरी क्या है?
हमें अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए तथा उन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। यह जानना महत्वपूर्ण है कि कुछ चीजें हैं जो आध्यात्मिक तरक्की में हमारी सहायता करती हैं। आध्यात्मिक प्रगति की कुंजी है मन को शांत करना।
यदि हम अपने मन को शांत नहीं करेंगे, तो हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को कभी नहीं जान पाएंगे. सच्चाई, अहिंसा, नम्रता,पवित्रता, और निष्काम सेवा जैसे सद्गुणों से भरपूर जीवन जीने से हम आध्यात्मिक मार्ग पर तेजी से तरक्की कर सकते हैं।
जब हम सद्गुणों से भरपूर जीवन जीते हैं, तो हमारा मन शांत रहता है, और एक बार जब हमारा शरीर और मन शांत हो जाते हैं, तो उस स्थिरता में हम अपने अंतर में प्रभु के साथ जुड़ पाते हैं। इसीलिए मन को शांत करना बहुत जरूरी है, क्योंकि हमारा मन ही समस्त इच्छाओं का स्रोत है।
मन को प्रभु की ओर केंद्रित रखने से इस प्रक्रिया में मदद मिलती है। इसी कारण सिमरन का बहुत महत्व है। सिमरन प्रभु के नामों के जाप द्वारा मन को व्यस्त रखता है। यदि हमारा मन खाली रहेगा, तो उसमें विचार पैदा होंगे,और जैसे ही हमारे अंदर कोई विचार उठताहै – चाहे वो विचार अच्छा हो या बुरा – वो हमारे ध्यान-अभ्यास में रुकावट डालता है।
एक बार जब हम मन को शांत करना सीख लेते हैं, तो हम अपने आप ही ऐसी अवस्था में पहुंच जाते हैं, जहां हमारे अंदर कोई इच्छा नहीं रहती। यदि हम आध्यात्मिक रूप से विकसित होना चाहते हैं, तो वो हम कहीं भी रहते हुए हो सकते हैं। एक शांत वातावरण, जिसमें कोई हलचल ना हो, हमें आध्यात्मिक प्रगति में अवश्य मदद करता है।
किसी भी चीज से मोह ना रखें: अपने आध्यात्मिक लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें अपनी प्राथमिकताओं का निरीक्षण करना होगा, ताकि हमारी इच्छाएं हमें इस भौतिक संसार की चीज़ों और गतिविधियों के साथ ना जोड़ती न चली जाएं। जब हम किसी भी चीज से मोह नहीं रखेंगे, तो हमारा ध्यान अपने आप ही प्रभु पर केंद्रित रहेगा।