विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित होने के बावजूद कश्मीरी पंडितों की घर वापसी आसान नहीं। अब तक इस दिशा में हुई कोई भी कोशिश कारगर नहीं हुई। हर बार घाटी में ऐसी कोशिशों का विरोध शुरू हो जाता है। अलगाववादियों द्वारा धरना प्रदर्शन तथा बंद के जरिये डर का माहौल पैदा किया जाता है ताकि कश्मीरी पंडित घाटी का रुख करने से घबराने लगें। पनुन कश्मीर का मानना है कि सरकारें गंभीरता से पंडितों की वापसी नहीं चाहती हैं। 19 जनवरी 1990 को घाटी से लाखों कश्मीरी पंडित अपनी माटी का दर्द लेकर निकले। 27 सालों से वे दर-बदर हैं। न हालात बदले और न ही माहौल ऐसा बना जिसमें ये लौट सकें।
कश्मीर हिंसा के दौरान पंडित कालोनी पर पत्थरबाजी हुई
मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों की ससम्मान वापसी के लिए अलग कालोनी बनाने का एलान किया तो घाटी में बवाल शुरू हो गया। अलगाववादियों ने बंद, प्रदर्शन, तोड़फोड़ शुरू कर दी। फिर यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। बाद में राज्य सरकार को कहना पड़ा कि पंडितों के लिए कोई अलग कालोनी नहीं बनेगी, बल्कि कंपोजिट कालोनी होगी जिसमें सिख और मुस्लिम सहित सभी विस्थापित रहेंगे। कश्मीर हिंसा के दौरान पिछले साल पंडित कालोनी पर पत्थरबाजी की गई। इनकी सुरक्षा के लिए लगाए गए पिकेट पर हमले किए गए। पंडितों का कहना है कि यह सब कुछ खौफ पैदा करने के लिए किया गया। परिणाम यह रहा कि प्रधानमंत्री पैकेज के तहत नियुक्त कर्मचारी भी घाटी से जम्मू चले आए। अब वे वापस जाने को तैयार नहीं है।
अलगाववादी नहीं चाहते घाटी में भारत का फुटप्रिंट रहे
सैनिक कालोनी तथा वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजियों को पहचान पत्र के मामले पर भी काफी हो हंगामा किया गया। कश्मीरी पंडितों का कहना है कि यह सब कुछ सोची समझी साजिश के तहत किया जाता है ताकि वहां कोई जाकर बसने न पाए। एमएएम कालेज के पूर्व प्रोफेसर एमएल रैना का कहना है कि अलगाववादी कतई नहीं चाहते हैं कि घाटी में भारत का कोई फुटप्रिंट रहे। इस वजह से लगातार हंगामा किया जाता है। हंगामे के बाद सरकार भी चुप बैठ जाती है। उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडित समुदाय का संघर्ष जारी रहेगा। कोशिश नहीं छोड़ेेंगे।