जिले के आलू उत्पादक किसान एक बार फिर भारी संकट में घिर गए। अपनी फसल को बेचने के लिए उप्र के मंडी में डेरा डाले बैठे किसानों पर केंद्र सरकार द्वारा एक हजार व पांच सौ रुपए के नोट को प्रचलन से बाहर करने का फैसला कहर बन कर टूटा है। फैसले के बाद मंडी में आई मंदी के बाद ट्रकों में भरे हुए आलू को खरीदने के लिए आढ़ती तैयार नहीं हो रहे हैं। पिछले चार दिन से उप्र में बैठे किसान,अपने फसल को छोड़कर वापस आने का मन बना रहे हैं। इससे किसानों को लाखों रुपए की आर्थिक हानि होने का अंदेशा है।
जिले के बगीचा तहसील के पंड्रापाठ,सन्ना सहित आसपास के पाट क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आलू की खेती की जाती है। पाठ क्षेत्र की ढालू जमीन,मिट्टी सहित अन्य भौगोलिक परिस्थितियां आलू उत्पादन के लिए बेहद अनुकूल हैं। शासकीय योजनाओं का लाभ लेकर पाटक्षेत्र के किसान बंजर पड़ी जमीनों में आलू की फसल ले रहे हैं। पाट क्षेत्र में आलू की खेती लगभग 17 साल पहले हुई थी।
जशपुर जिले के बगीचा और मनोरा के साथ सरगुजा के सामरी पाट क्षेत्र में उत्पादित होने वाले आलू की उप्र के मंडियों में जबरदस्त मांग रहती हैं। किसानों द्वारा खेतों में बीज बुआई करने के साथ ही उप्र से व्यापरियों का किसानों से सौदेबाजी का दौर शुरू हो जाता है। फसल की कीमत को लेकर जिले के आलू उत्पादक किसानों को हर साल अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।
जिले में आलू उत्पादक किसानों की सबसे बड़ी समस्या फसल को बेचने की है। जिले के किसान आलू की फसल इलाहाबाद, बनारस, लखनऊ की मंडी में बेचते है। बगीचा से इन मंडियों की दूरी लगभग 500 किमी पड़ती है। मंडियों तक फसल को पहुंचाने के लिए 20 से 21 रुपए प्रति टन के हिसाब से भाड़ा चुकाना पड़ता है। एक ट्रक का भाड़ा लगभग 40 से 50 हजार रुपया बनता है। किसानों का कहना है कि बाजार में अचानक आलू की कीमत इतने नीचे स्तर पर आ जाता है कि भाड़ा चुकाने के बाद लाभ के नाम पर एक पैसा भी नहीं बचता।
मंडी में मंदी से किसान परेशान
खेतों से फसल की खुदाई के बाद इन दिनों किसान अपनी आलू की फसल को बेचने के लिए उप्र के बनारस के पहड़िया मंडी में डेरा डाले है। पंड्रापाठ के किसान पलटू यादव ने बताया कि वे अपने 20 टन आलू लेकर पिछले तीन दिनों से बैठे हुए हैं,लेकिन यहां के आढ़ती फसल को खरीदने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं। महनिया के उमेश यादव का कहना है कि मंडी में आलू की थोक कीमत 1 से 2 रुपए किलो बोली जा रही थी,लेकिन इन दिनों वह भी पूरी तरह से बंद हो चुकी है।
फसल को किसी भी कीमत में बेचने के लिए तैयार किसान मंडी के आढ़तियों के पास रोज चक्कर काट रहे हैं। लेकिन वे इसे खरीदने के लिए तैयार नहीं है। पहड़िया में डेरा जमाए बैठे किसान रमेश गुप्ता, फजिर आलम, मिथलेस गुप्ता ने फोन पर बताया कि उप्र के मंडियों में पंजाब से आलू की फसल बड़ी मात्रा में आ जाने से यह स्थिति उत्पन्न हो गई है। इन किसानों का कहना था कि आने वाले एक-दो दिन में स्थिति ना सुधरी तो वे फसल को फेंकने के लिए मजबूर हो जाएंगें। क्योकि इन्हें वापस ले कर आने के लिए आर्थिक बोझ उठाने की स्थिति में वे नहीं हैं।
बारिश और बीज बदलने से किसानों को हो चुका है नुकसान
जानकारी के मुताबिक पाट क्षेत्र के अधिकांश बड़े आलू उत्पादक किसान इस बार आगरा गुल्ला प्रजाति को छोड़ कर ज्योति प्रजाति के आलू बीज खेतों में डाला था। किसानों के मुताबिक गुल्ला के मुकाबले ज्योति से मिलने वाले आलू का आकार बड़ा, गोल और चिकना होता है। मंडी में इसकी कीमत गुल्ला के अपेक्षा 1 से डेढ़ रुपया प्रति किलो अधिक मिलता है।
अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार पाट क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक ज्योति प्रजाति के आलू की बुआई की गई थी। इस प्रजाति के आलू बीज के लिए बड़े किसान झारखंड की राजधानी रांची और उप्र से खरीद कर लाए थे। गुल्ला की अपेक्षा ज्योति बीज की कीमत भी किसानों का अधिक चुकानी पड़ी थी। बाजार में आगरा गुल्ला बीज किसानों को 25 रुपए किलो में मिला था,जबकि ज्योति के लिए किसानों को 35 रुपए तक चुकाने पड़े थे। पिछले साल की तुलना में किसानों को सभी प्रकार के आलू बीज के 2 से 3 रुपए अधिक चुकानी पड़ी थी ।
मंडी में अच्छी कीमत पाने की उम्मीद में महंगा होने के बावजूद किसानों ने ज्योति बीज को चुनना पसंद किया। लेकिन अक्टूबर में जैसे आलू की खुदाई शुरू हुई किसानों के होश उड़ गए। ज्योति प्रजाति के आलू बोने वाले किसानों के खेतों से बामुश्किल बोए गए बीज के बराबर आलू निकल पाया। पंड्रापाठ किसान विरेन्द्र कुजुर ने बताया कि उन्होनें लगभग 20 एकड़ में ज्योति प्रजाति का आलू बोया था। इसके लिये उन्होनें 150 क्विंटल बीज खरीदा था। फसल की बुआई से लेकर इसे उखाड़ने तक लगभग 4 लाख की पूंजी उन्होनें लगाया। लेकिन फसल उन्हें मुश्किल से 150 क्विंटल आलू ही मिल सका है। इस फसल से उनके बीज का खर्चा निकल पाना मुश्किल है। यही स्थिति चुंदापाठ के किसान रामकृपा यादव के साथ हुआ। 20 एकड़ की खेती में उन्हें महज 25 क्विंटल ही आलू मिल सका है। जानकारों के मुताबिक अधिक बारिश होने के कारण ज्योति प्रजाति के बीज का अंकुरण प्रभावित हुआ,जिससे आलू की खेती प्रभावित हुई।
केंद्र सरकार के निर्णय से बढ़ी परेशानी
मंडी में बैठे किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा पांच सौ और एक हजार रुपए नोट का प्रचलन बंद किए जाने के निर्णय से भी मंडी का कारोबार प्रभावित हुआ है। मिथलेस गुप्ता व फजिर आलम ने बताया कि किसान फसल का भुगतान चेक से लेने को तैयार हैं,लेकिन खरीददार इसमें रुचि ही नहीं ले रहे हैं। मंडी के व्यवसायी सरकार के घोषणा के बाद से ही खरीदी कम कर रहे हैं। बारिश और बीज से धोखा खा चुके आलू उत्पादक किसानों पर नोट पर केंद्र सरकार द्वारा लिया गया निर्णय तिहरा मुसीबत बन कर टूटा।
किसानों को मंडी में आलू की फसल की कीमत ना मिलने की सूचना विभाग को नहीं मिली है। अगर किसी कारण से मंडी में मंदी है तो किसानों को कुछ दिन इंतजार करना चाहिए।