उत्तराखंड की विभिन्न जेलों में हत्या के मामलों में बंद 19 सजायाफ्ता कैदी तीन महीने तक का पैरोल पाकर बाहर आ गए हैं। यह जानकारी चौंकाने वाली इसलिए है कि बीते वर्षों खासतौर पर चुनाव के दिनों में अमूमन इतनी कम अवधि में हत्या के इतने सजायाफ्ता कैदी एक साथ कभी जेल से बाहर नहीं किए गए हैं। एक साथ इतने हत्यारों के जेल से बाहर आने को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं। भाजपा, जहां इन अपराधियों के चुनाव में इस्तेमाल की आशंका जता रही है, वहीं कांग्रेस ने इन आरोपों को खारिज करते हुए पैरोल को बंदियों का हक बताया है। भाजपा प्रवक्ता ने इस मामले को चुनाव आयोग के समक्ष ले जाने की बात कही है। खैर, एक साथ हत्या के इतने मुजरिमों को चुनाव से पहले पैरोल पर छोड़ने की वजह से कांग्रेस पर अंगुली उठना लाजिमी है।
हत्या के मामले में सजा काट रहे ये आरोपी
विधानसभा चुनाव के लिए अब सिर्फ एक माह का वक्त बचा है। ऐसे में प्रशासन और पुलिस के अफसर तेजी से अपराधियों पर अंकुश लगाने की कार्रवाई करने में जुटे हैं। डीजीपी और गृह विभाग लगातार निर्देश दे रहा है कि अपराधियों पर निगरानी रखी जाए और पूर्व में विभिन्न मामलों में जेल जा चुके अपराधियों पर सख्ती बरती जाए। मगर इसके उलट गृह विभाग ने बंदियों को पैरोल देने का सिलसिला और तेज कर दिया। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक बीती सात दिसंबर से तीन जनवरी के बीच प्रदेश की विभिन्न जेलों में निरुद्ध सजायाफ्ता बंदियों को एक से तीन माह का पैरोल दिया गया है। जिन बंदियों को पैरोल मिला वे सभी हत्या के मामलों में सजा काट रहे हैं।
इनकी तो जेल के बाहर ही कट रही सजा
देहरादून स्थित जिला कारागार में निरुद्ध सिद्धदोष बंदी नरेंद्र सिंह पंचपाल को बीते मई माह में एक महीने, जून में तीन महीने, सितंबर में फिर तीन महीने पैरोल मिला। इसके बाद 20 दिसंबर को फिर पिता के उपचार के लिए उसे तीन माह का पैराल स्वीकृत कर दिया गया है। इसी तरह देहरादून की ही जेल में बंद दीपक भट्ट को जुलाई में एक माह और अगस्त में दो माह के बाद सितंबर के अंत में दो माह का पैरोल मिला। एक बार फिर 22 दिसंबर को उसे दो माह का अतिरिक्त पैरोल दिया गया। कुछ ऐसा ही मामला देहरादून में बंद कैदी धीरज कालरा का है। उसे माता-पिता के उपचार के नाम पर जुलाई में तीन माह, अक्टूबर में तीन माह और फिर 22 दिसंबर को दो माह का पैराल दिया गया है। देहरादून में ही बंद बंदी नितिन को अगस्त में एक माह, सितंबर में तीन माह और 26 दिसंबर को लगातार दो माह का पैरोल फिर से दिया गया।
माहौल खराब करने की कोशिश
कांग्रेस चुनाव के दौरान माहौल खराब करने की कोशिश में है। वह हमेशा इस तरह के तत्वों का फायदा उठाने की फिराक में रहती है। भ्रष्टाचार पर चारों ओर से घिरी कांग्रेस अब किसी तरह अपराधियों को इस्तेमाल कर न केवल चुनाव में अराजकता फैलाना चाहती है, बल्कि चुनाव भी जीतने की कोशिश में है। हमारी पार्टी हमेशा से अपराधियों के खिलाफ रही है। इस मामले की शिकायत चुनाव आयोग से की जाएगी।
–अनिल बलूनी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी
यह भाजपा की परंपरा
हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं है। पैरोल लेना जेल में बंद कैदियों का अधिकार है। गृह विभाग ने नियमानुसार ही पैरोल स्वीकृत किया है। कांग्रेस सरकार की मंशा कभी भी अपराधियों का चुनाव में लाभ लेने की नहीं रही है। यह परंपरा हमेशा से भाजपा की रही है।
–सुरेंद्र अग्रवाल, मुख्य सलाहकार, मुख्यमंत्री