जानिए क्यों मजबूर है मासूम गीता…

साहब आपने योजनाएं तो बनाई हैं,
लेकिन मुझे उनका लाभ नहीं मिला.
इंतजार भी बहुत किया पर आपने ध्यान नहीं दिया.
क्या करें जिंदगी तो जीने का नाम है,
आपने भले ही मदद न की हो,
पर हमने जिंदगी के सफर पर चलने का रास्ता निकाल ही लिया.

मुंह से बिना कुछ बोले टकटकी लगाए देख रही, बच्ची शायद सरकार और उसके नुमाइंदों से यही कह रही है कि आप अपनी योजनाओं का ढिंढोरा भले ही पीटते रहो, मगर असल में जरूरतमंदों को आपकी योजनाओं का लाभ अब भी नहीं मिल पा रहा है.

दरअसल, गरियाबंद जिले के गोंदलाबाहरा गांव की रहने वाली आदिवासी बच्ची गीता जब महज 15 दिन की थी तब उनके घर में आग लगने से उसके दोनों पैर जल गए थे और वो अपाहिज हो गई थी. आज गीता 12 साल की हो गई है. दोनों पैरों के पंजे जल जाने के कारण उसे चलने में भारी कठिनाई होती है.capture

बेटी के इलाज के लिए उसके मां रामबाई और पिता देवी सिंह ने सरकार से भी मदद मांगी पर जब आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला तो उसने स्टील का गिलास काट एक जुगाड़ बना लिया. दर्द होने के बाद भी गीता मजबूरीवश उसी गिलास को पैर की तरह इस्तेमाल करके चलती-फिरती है और स्कूल भी जाती है. ये गिलास अब उसकी जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है.

कृत्रिम पैर और आर्थिक मदद के लिए गीता के माता-पिता ने शासन से कई बार गुहार लगाई, जिला अस्पताल गए, कलेक्टर के पास गए, आवेदन दिए, फरियादें लगाईं, मगर हर बार सिवाय कोरे आश्वासन के कुछ नहीं मिला.

रमन सिंह की सरकार में समाज के कल्याण का जिम्मा संभाल रहे अधिकारी सभी प्रकार की योजनाएं होने दावा करते नजर आते हैं. उनकी बातों से भी ऐसा लगता है कि जरूरतमंदों को पलक झपकते ही सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकता है. मगर हकीकत यही है कि सरकार और उसके नुमाइंदे 12 साल बाद भी न तो गीता की जरूरत का पता लगा पाए और ना उसकी जरूरत पूरी कर पाए.

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