बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध जिस समय जन्में उस समय बड़े भाई का कहना हर हाल में मानना पड़ता था। यह बहुत ही रोचक है कि आनंद, गौतम के शिष्य थे लेकिन भिक्षु बनने से पहले वह गौतम बुद्ध के बड़े भाई थे। भिक्षु बनने से पहले उन्होंने एक शर्त रखी, ‘देखो, मैं अब तुम्हारा शिष्य बनने जा रहा हूं।
एक बार शिष्य बनने के बाद मुझे तुम्हारी हर बात माननी होगी, लेकिन फिलहाल मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूं और तुम्हें मेरी बात माननी होगी।
तो शर्त सिर्फ इतनी है कि चाहे जो भी हो जाए, हम जीवनभर साथ रहेंगे। चाहे कुछ भी हो, तुम मुझे कहीं नहीं भेज सकते। तुम जहां भी रहोगे, मैं शारीरिक रूप से हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा।’
गौतम तब तक एक महान गुरु नहीं बने थे, वह किसी हद तक एक साधक ही थे लेकिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हो चुका था। इसलिए आनंद ने पहले ही शर्त रख दी, ‘चाहे जो भी हो जाए, शरीर से मैं हमेशा आपके साथ ही रहूंगा।’
गौतम ने उनसे कहा, ‘ यह आपके लिए अच्छा नहीं है, लेकिन आप बड़े भाई हैं, इसलिए मैं आपकी बात को मना नहीं कर सकता। अगर आप आग्रह करेंगे, तो मुझे मानना पड़ेगा।’ आनंद बोले, ‘ हां, यह मेरा आग्रह है।’
इसके बाद आनंद, गौतम के ही कमरे में सोते और हमेशा उनके साथ मौजूद होते।
जब गौतम बुद्ध का आखिरी वक्त यानी महाप्रयाण का समय आया तो काफी बाद में आने वाले लोगों ने वहां रोशनी देखी। उन लोगों ने आनंद की ओर देखकर पूछा, ‘ऐसा क्यों हुआ।’ वह तो पहले दिन से बुद्ध के साथ थे, मगर उन्हें कुछ पता क्यों नहीं चला?
फिर उन लोगों ने गौतम से पूछा, ‘क्यों वह आखिरी दिन तक अज्ञानी रहे?उनके साथ ऐसा क्यों हुआ? वह हर समय आपके साथ रहे, क्या आपके साथ रहकर कोई लाभ नहीं हुआ?
तब गौतम बुद्ध ने कहा बहुत, ‘चम्मच कभी सूप का स्वाद नहीं चख सकता। चम्मच हमेशा सूप में रहता है, मगर क्या वह सूप का स्वाद चख सकता है?