नई दिल्ली. इंडियन एविएशन इंडस्ट्री में पिछले 10 साल में पैसेंजर्स की संख्या और सीट में काफी बदलाव आया है। एविएशन रेग्युलेटर डीजीसीए के अनुसार, डोमेस्टिक पैसेंजर्स की संख्या 2005 से 2016 के बीच करीब पांच गुना बढ़कर 9.5 करोड़ हो गई। वहीं, सीट्स की संख्या करीब 6 गुना बढ़कर 11 करोड़ हो गई। इंडियन एविएशन इंडस्ट्री की एवरेज सालाना ग्रोथ 18 फीसदी है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। इस तरह अगले 10 साल में अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एविएशन मार्केट बन जाएगा। अभी भारत पांचवां सबसे बड़ा एविएशन मार्केट है।

– डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) के अनुसार, पिछले 10 साल में डोमेस्टिक रुट्स पर पैसेंजर की संख्या 5 गुना से ज्यादा बढ़ी है। 2005 में डोमेस्टिक रूट पर पैसेंजर्स की संख्या करीब 1.8 करोड़ थी। 2016 में यह करीब 9.5 करोड़ रहा।
– वहीं, 2005 डोमेस्टिक एविएशन में सीट की संख्या करीब 2 करोड़ थी, जो 2016 में 11 करोड़ से ज्यादा हो गई है। यानी, डोमेस्टिक रूट पर सीट्स की संख्या करीब 6 गुना बढ़ी है।
क्या रही वजह?
– एविएशन एक्सपर्ट हर्षवर्धन ने बताया कि पिछले 10 साल में एविशएन इंडस्ट्री के इन्फ्रास्ट्रक्चर और ऑपरेटिंग मॉडल में काफी बदलाव आया है।
– घरेलू रूट्स पर एयरक्राफ्ट बढ़े हैं। 2005 में घरेलू रूट्स के लिए करीब 200 एयरक्राफ्ट्स थे। 2016 में यह संख्या करीब 700 हो गई है। एयरपोर्ट्स इन्फ्रा बेहतर हुआ है। छोटे शहरों में कनेक्टिविटी बढ़ी है।
– हर्षवर्धन का कहना है कि भारत प्राइस सेंसिटिव मार्केट है। यही वजह है कि देश में लो-कॉस्ट कैरियर्स का मॉडल तेजी से बढ़ा है। आज करीब 65 फीसदी मार्केट पर लो-कॉस्ट कैरियर्स का कब्जा है।
10 साल में टर्निंग प्वाइंट
– डोमेस्टिक एविएशन इंडस्ट्री के लिए बीते 10 साल में कई टर्निंग प्वाइंट रहे। 2005 में ही डोमेस्टिक एविएशन इंडस्ट्री में प्राइव वार शुरू हुआ। यह दौर 2007 तक चला।
– एयर डेक्कन, स्पाइसजेट, किंगफिशर, गोएयर जैसी कंपनियों के आने से प्राइस वार शुरू हो गया। इसमें फेयर प्राइस तो नीचे आए गए लेकिन एविएशन कंपनी की सेहत पर बुरा असर हुआ।
– प्राइस वार का नतीजा यह रहा कि तकरीबन सभी डोमेस्टिक एयरलाइंस को भारी नुकसान उठाना पड़ा। एयर डेक्कन को भारी घाटा हुआ और आखिरकार 2008 में उसका किंगफिशर में मर्जर हो गया। डेक्कन का ब्रांड बदलकर किंगफिशर रेड हो गया। किंगफिशर के बंद होने के बाद प्राइस वार लगभग खत्म हो गया।
– 2006 में ही जेट ने एयर सहारा को खरीद लिया था। यह उस समय इंडियन एविएशन इंडस्ट्री की सबसे बड़ी डील थी। यह डील करीब 2300 करोड़ रुपए में हुई थी।
– हर्षवर्धन के अनुसार, सस्ते फ्यूल और बेहतर इन्फ्रा का फायदा एयरलाइंस कंपनियों ने लो-कॉस्ट मॉडल के जरिए उठाया। 2013 के बाद से एयरलाइंस कंपनियों ने लो-कॉस्ट मॉडल को तेजी से भुनाया। इसका फायदा उन्हें मिला। एयरलाइंस ट्रैवलर में आज तकरीबन 65 फीसदी इंडिविजुअल पैसेंजर हैं।
एयरलाइंस की कैपेसिटी बढ़ी
– पिछले 10 साल में एयरलाइंस के फ्लाइंग कैपेसिटी में बढ़ोतरी हुई है। 2005 में डोमेस्टिक एयरलाइंस की यूटिलाइजेशन कैपेसिटी 2800 घंटे सालाना थी। 2016 में यह 3200 घंटे सालाना है। ग्लोबल स्टैंडर्ड के लिहाज से यह काफी अच्छा है।
क्या फेयर घटे?
– 10 साल में एविएशन फेयर में भी गिरावट आई है। लेकिन, इसकी तुलना 2005 और 2016 के किसी घरेलू रूट पर एयर फेयर से नहीं की जा सकती है।
– इकोनॉमिक पैरामीटर्स पर देखें तो एविएशन फेयर में बीते 10 साल में करीब 20 फीसदी की गिरावट आई है। फेयर में यह गिरावट में साल-दर-साल इन्फ्लेशन की ग्रोथ रेट को डिस्काउंट करने पर मिलेगी।