जमरूद परवीन कैब चला रही अपने सपने पूरे करने के लिए

दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से बीए करने वाली जमरूद परवीन आज की महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह कैब चलाकर परिवार को चलाने के साथ ही अपने सपने को पूरा कर रही हैं।

परवीन उस शहर में टैक्सी ड्राइवर हैं, जिसे बेटियों के लिए असुरक्षित माना जाता है। ऐसे में परवीन का यह कदम काबिल-ए-तारीफ है। पढ़िए परवीन के इस हौसले की कहानी, उन्हीं की जुबानी।मैं 13 साल पहले अपने परिवार के साथ 9 वर्ष की उम्र में दिल्ली आई थी। मेरे अब्बू ने फैसला किया था कि हम उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव को छोड़कर अपने परिवार के साथ दिल्ली रहें, ताकि अन्य लोगों की तरह हमें भी रोजगार के अच्छे अवसर मिलें।मैं अपने पिताजी का शुक्रिया अता करती हूं, जो वे हमें यहां ले आए। मैंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 9वीं कक्षा में प्रवेश लिया और वहां 12 वीं तक पढ़ी। मैं जानती थी कि मुझे आगे और पढ़ना है, लेकिन घर की अर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते घर से पैसे मिलना आसान नहीं था।

ड्राइविंग करने का सपना अम्मी का था

यह मेरी अम्मी का सपना था कि वह खुद ड्राइविंग करें। हमें पता चला कि आजाद फाउंडेशन एक एनजीओ है, जो वंचित महिलाओं को ड्राइविंग सिखाता है। तब अम्मी ने कहा कि मैं हमेशा से ड्राइविंग करना चाहती थी, लेकिन अब मैं चाहती हूं कि तुम ड्राइविंग सीखो।

इसके बाद हम आजाद फाउंडेशन गए, जहां हम दोनों ने एक साथ छह माह तक ड्राइविंग सीखी। 18 साल की होने के बाद मेरा ड्राइविंग लाइसेंस बना। अब वो समय दूर नहीं था, जब मैं ड्राइविंग करूं। मैंने एक प्राइवेट कंपनी में काम शुरू कर दिया, जहां मैंने तीन साल लगातार काम किया और अब एक साल से उबर कैब में काम कर रही हूं।

ड्राइविंग का सबसे अच्छा तोहफा मेरी शिक्षा

अल्लाह मेहरबान रहा और माता-पिता ने मेरा खूब समर्थन किया। मेरे तीन छोटे भाई-बहन भी हैं, जो माता-पिता की देख-रेख में हैं। जहां तक मेरा सपोर्ट करना संभव है, उन्होंने किया जिससे मेरे आत्मविश्वास की कड़ी मजबूत होती है।

ड्राइविंग ने जो मुझे तोहफा दिया है, वह है शिक्षा। अब मैं बीए तृतीय वर्ष में हूं। इन पंक्तियों का मैं हमेशा धन्यवाद करती हूं कि इस काम में मुझे पढ़ाई के लिए पर्याप्त धन और पर्याप्त समय मिला, जो मेरी आजीविका और पढ़ाई के लिए काफी था।

बनना चाहती हूं प्रोफेसर

हर किसी को लगता था कि लड़की होने के नाते दिल्ली जैसे शहर में ड्राइविंग करना अजीब है। जहां लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं, उस शहर में एक लड़की होकर ड्राइविंग करना चिंता की बात थी। मगर, ईमानदारी से कहूं, तो ऐसा कुछ नहीं था। मेरे लिए ये चार साल बुहत अच्छे रहे।

असल में लोग मुझसे पूछते थे कि मैं कितने साल की हूं और जीवन के लिए क्या कर रही हूं। ड्राइविंग के अंतिम क्षण तक वे मेरे लिए दुआ करते थे। इस शहर के बारे में सुरक्षा को लेकर कुछ पूर्वाग्रह हैं, लेकिन पुर्वाग्रह को भूलकर हम अपनी भविष्यनिधि का निर्माण करें, तो यह काफी बेहतर है। उसने कहा कि वह अगले दस साल में खुद को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफसर के रूप में देखना चाहती है।

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