मंदिर आस्था के वह स्थान हैं, जहां हर वस्तु में ईश्वर का वास होता है। फिर चाहे वह पत्ते ही क्यों न हो, ऐसा ही एक शक्तिपीठ है सुरकंडा मंदिर जहां प्रसाद में पत्ते दिए जाते हैं।
यह पत्ते यहां मौजूद स्थानीय पेड़ के होते हैं। यह पेड़ रौंसली के नाम से जाना जाता है जिसके पत्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। रौंसली के पत्तों को भक्तजन अपने घरों में रखते हैं।
दरअसल, सुरकंडा मंदिर देवी के 52 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर ऋषिकेश से वाया चम्बा करीब 80 किमी का सफर तय करने के बाद कद्दूखाल के नजदीक है। कद्दूखाल से यह मंदिर 2 किमी का पैदल सफर कर मंदिर तक पहुंचा जाता है।
स्कंद पुराण में वर्णित है, ‘जब दक्ष प्रजापति के यज्ञ में शिव को नहीं बुलाया गया, तो सती ने नाराज होकर हवन कुंड में स्वयं की आहुति दी। इसके बाद शिव सती को कंधों पर लेकर घुमाते रहे। इस दौरान जहां जहां सती का जो अंग गिरा वह स्थान उसी नाम से जाना जाने लगा। सुरकंडा में माता सती का सिर गिरा था जिस कारण इसका नाम सुरकंडा पड़ा।
यह पवित्र स्थान यह स्थान समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर वर्षभर खुला रहता है। लेकिन यहां नवरात्र और गंगा दशहरा में दर्शन करना विशेष माना गया है। यह एक मात्र शक्तिपीठ है जहां गंगा दशहरा पर मेला लगता है।