नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने आज बीएचयू में कहा कि देश में महिलाओं की स्थिति पर बेहद खराब है। यहां बेटियों को जानवरों से भी कम दाम में बेचा जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे देश के कई गांवों में दो लाख रुपये की भैंस बिक रही है और लड़कियां 50 हजार में बेची जा रही हैं।
इनसे घरेलू नौकर और वेश्यावृत्ति जैसे काम कराए जा रहे हैं। स्वतंत्रता भवन में कैलाश सत्यार्थी ‘सुरक्षित बचपन सुरक्षित भारत’ विषय पर आयोजित शताब्दी व्याख्यान में कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि हमारा बचपन सुरक्षित नहीं है। हमारे साथियों ने एक खिलौने के कारखाने पर छापेमार कार्रवाई की। वहां से बच्चों को मुक्त कराया। उनमें से एक बच्चे ने बताया कि वह पत्थर से खेलते हैं। खिलौने बनाने वाले ये कभी खिलौनों से नहीं खेले।
उन्होंने कहा कि मेरा मानना था कि गंगा मैया का नाम लेने से गंगा मैया पवित्र नहीं होगी बल्कि उनके आसपास जो भी पाप हो रहा है, उसका अंत करना होगा। इसलिए मैंने यहां के बच्चों को बालश्रम से मुक्त कराने के बाद कल यहां अपनी पत्नी के साथ गंगा आरती की। इससे पहले बचपन बचाओ आंदोलन के प्रणेता कैलाश सत्यार्थी मंगलवार को काशी पहुंचे। काशी लौटे तो उन्हें उनकी पुरानी यादें भी ताजा हुईं। बुनकरों और कालीन उद्योग में काम करने वालों बच्चों को आजादी दिलाने, उन्हें उनका अधिकार दिलाने के लिए कई वर्षों तक उन्होंने यहां काम किया। ये भी संयोग ही था कि 17 जनवरी 1998 में उन्हाेंने बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए ग्लोबल मार्च अभियान चलाया और इस अभियान के 18 साल पूरे होने के दिन कैलाश सत्यार्थी काशी में थे।