उत्तर प्रदेश की देखादेखी दिल्ली, मध्यप्रदेश व गुजरात में भी अफवाहों का बाजार गर्म हो गया।
बीते शुक्रवार को नमक खत्म होने या नमक बहुत मुश्किल से मिलने की चर्चा ऐसी फैली कि बिना किसी ठोस वजह के देखते-देखते नमक का कृत्रिम संकट खड़ा हो गया। कहा जाता है कि हम सूचना और संसार के युग में जी रहे हैं। लिहाजा, झूठ के फैलने की गुंजाइश बहुत कम होनी चाहिए, क्योंकि तथ्यों से फौरन लोगों को अवगत कराया जा सकता है। पर संचार-सुविधाओं ने अफवाहों को भी पंख लगा दिए हैं। शुरुआत शायद लखनऊ से हुई। किसी ने नमक खत्म होने की अफवाह उड़ा दी। फिर क्या था, देखते-देखते लोग दुकानों की तरफ दौड़ने लगे, नमक की खातिर। आखिर इससे ज्यादा जरूरी चीज उनके लिए और क्या हो सकती है। प्याज महंगा हो जाए तो मीडिया के मुंह बंद नहीं होते। दाल की कीमत को लेकर भी कुछ दिन मीडिया खूब मुखर रहा। सरकार के माथे पर बराबर परेशानी की लकीरें दिखती रहीं, क्योंकि इस सब से जन-समर्थन प्रभावित होता है। पर नमक तो प्याज और दाल से भी ज्यादा जरूरी चीज है। बाकी खाद्य पदार्थों में विकल्प चुने जा सकते हैं, पर नमक का तो कोई विकल्प नहीं हो सकता। इसलिए अफवाह ने आतंक का रूप ले लिया।
बदहवासी में लोग मुंहमागे दामों पर नमक खरीदने लगे।
आमतौर पर जितना एक बार में खरीदते हैं उससे कई-कई गुना ज्यादा मात्रा में। चंद मिनटों में ही लखनऊ जैसा हाल उत्तर प्रदेश के अनेक शहरों में हो गया। कई जगह पुलिस अफसरों ने लाउडस्पीकर से लोगों को आगाह किया कि वे अफवाहों पर कान न दें, नमक की कोई किल्लत नहीं है। उत्तर प्रदेश की देखादेखी दिल्ली, मध्यप्रदेश व गुजरात में भी अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। बहुत ऊंचे दामों पर काफी-काफी मात्रा में लोग नमक खरीदने को उतावले हो गए। हालात को देखते हुए केंद्रीय खाद्यमंत्री रामविलास पासवान और केंद्रीय वाणिज्यमंत्री निर्मला सीतारमण ने बयान जारी किया कि नमक की कोई किल्लत नहीं है; अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ राज्य सरकारें कार्रवाई करें। कहना मुश्किल है कि इस अफवाह के पीछे किसी किस्म की साजिश थी या नहीं। पर ऐसा लगता है कि पांच सौ और हजार रुपए के नोट बंद होने से पैदा हुए हालात से इस अफवाह का संबंध जरूर है।
खुले पैसे का भयानक संकट चल रहा है, क्योंकि नया यानी दो हजार का नोट देने पर दुकानदार के पास फेरने के लिए पर्याप्त खुले पैसे नहीं होते। ऐसे में लोग कुछ और सामान खरीदने या वही सामान ज्यादा मात्रा में खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं। हो सकता है इसी अफरातफरी में नमक के ऊंचे दाम पर बिकने, असामान्य रूप से ज्यादा मात्रा में खरीदे जाने की ‘खबर’ फैली हो। फिर चीनी को लेकर भी वैसी ही अफवाह चल पड़ी। इन घटनाओं से हमारे समाज की अपरिपक्वता जाहिर है। पर एक सबक सरकार के लिए भी है। उसने पांच सौ और हजार के नोट बंद करने का निर्णय तो कर लिया, पर ऐसी सूरत में
बैंकों से लेकर एटीएम तक जो तैयारी होनी चाहिए थी, मुकम्मल तौर पर नहीं हुई। फिर दो हजार के बदले, पहले पांच सौ
का नया नोट आता, तो बाजार में खुले पैसे का ऐसा संकट नहीं खड़ा होता।
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