भारतीय हाकी टीम के लिये दुनिया भर में घूमती है बार्मी आर्मी

लखनऊ: कोई लंदन में सरकारी नौकरी करता है तो किसी का दिल्ली में अपना कारोबार है लेकिन हाकी के लिये अपने खर्च पर ये पिछले कई साल से दुनिया घूम रहे हैं और हाकी की बार्मी आर्मी के नाम से मशहूर यह ग्रुप आपको हर अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में हाथ में तिरंगा लिये दर्शक दीर्घा में नजर आ जायेगा।

वन टीम वन ड्रीम नाम से भारतीय हाकी के समर्थक इस ग्रुप के सदस्यों में लंदन, फिनलैंड, दिल्ली और पंजाब के दर्जन भर हाकीप्रेमी है और इनकी संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है । दिल्ली के रहने वाले राजा नामधारी ने यहां जूनियर विश्व कप के दौरान भाषा से कहा , हम सभी ने 2010 में इस ग्रुप को औपचारिक नाम दिया और अब फेसबुक पर हमारे पेज के जरिये हाकीप्रेमी हमसे जुड सकते हैं। भारतीय हाकी हमारा जुनून है और हम इसे फैलाना चाहते हैं। जैसे क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर के सुधीर गौतम जैसे प्रशंसक है, वैसे ही हमारी भी पहचान दुनिया भर में बन गई है।

पिछले छह साल में यह ग्रुप अपने खर्च पर विश्व हाकी लीग, लंदन में चैम्पियंस ट्राफी, रियो ओलंपिक, विश्व कप, वालेंशिया में चार देशों का टूर्नामेंट और लंदन में जूनियर हाकी टीम की टेस्ट सीरिज भी देख चुका है । इसके पुराने सदस्यों में बलदेव सिंह कलसी जैसे समर्थक भी हैं जो 12 ओलंपिक, विश्व कप, चैम्पियंस ट्राफी देख चुके हैं।

लंदन में ब्रिटिश एयरवेज में काम करने वाले कलसी ने कहा , मैं युगांडा में रहा और फिर इंग्लैंड बस गया लेकिन हाकी का शौक बरकरार रहा । मैने पहला ओलंपिक 1972 में म्युनिख में देखा था और इस साल रियो भी जा चुका हूं। कई बार छुट्टी लेने के लिये ओवरटाइम करना पड़ता है लेकिन कोई बात नहीं । मैने विश्व कप 1975 का फाइनल देखा है जब अशोक कुमार के गोल से भारत ने खिताब जीता था।

ग्रुप के अध्यक्ष जुझार सिंह प्लाहा 1976 मांट्रियल ओलंपिक से लेकर 2016 रियो तक 11 ओलंपिक और विश्व कप देख चुके हैं। उन्होंने कहा , 1964 से 1972 के बीच हम कीनिया में रहे और वहां भारत और पाकिस्तान की टीमें नियमित तौर पर खेलने आती थी । मैने अजितपाल, पृृथपाल, उधम सिंह और मोहम्मद शाहिद जैसे खिलाडियों को देखा है। कई बार मेरा परिवार भी साथ में मैच देखने जाता है।

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लंदन में सरकारी नौकरी करने वाले पिंडर सिंह ने कहा कि उनके ग्रुप का लक्ष्य हाकी के लिये लोगों को मैदान पर खींचना है। उन्होंने कहा, इतने साल में बहुत कुछ बदल गया। एस्ट्रो टर्फ आ गई, नियम बदल गए लेकिन हाकी को लेकर हमारा जुनून नहीं बदला । भारतीय हाकी ने काफी तरक्की की है लेकिन क्रिकेट की तरह स्टेडियम में दर्शकों को खींचना जरूरी है। हमारा वही मकसद है कि लोग हमें देखकर प्रेरित हों।

हाकी के मैदान पर अपनी सबसे सुनहरी याद के बारे में पूछने पर उन्होने कहा कि राष्ट्रमंडल खेल 2010 और विश्प कप में पाकिस्तान पर मिली जीत को कभी नहीं भुला सकते। वहीं सबसे खराब पल के बारे में उन्होंने कहा, बीजिंग ओलंपिक 2008 के लिये भारत का क्वालीफाई नहीं कर पाना और भुवनेश्वर में 2014 चैम्पियंस ट्राफी में भारत पर जीत के बाद पाकिस्तानी टीम के अभद्र बर्ताव के कड़वे मंजर को वे कभी नहीं भूल सकते।

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