1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था। इस युद्ध में भारत ने कम संसाधनों के बाद भी चीन का सामना किया और कई मोर्चों पर उसके दांत खट्टे किए। युद्ध भूमि में भारत ने अपने कई वीर सपूत भी खोए, इन्हीं में से एक थे मेजर शैतान सिंह।
37 साल के शैतान सिंह के नेतृत्व में 13वीं कुमाऊंनी बटालियन की सी कंपनी ने 16000 फीट ऊंचाई पर स्थित रेजांग ला दर्रे में चीनी सैनिकों का सामना किया था। 123 सैनिकों के साथ शैतान सिंह अपनी पोस्ट पर जमे रहे।
कहा जाता है कि चीनी सैनिकों की टुकड़ियों ने आक्रमण किया लेकिन शैतान सिंह और उनके साथियों ने 1000 से अधिक चीनी सैनिकों की जान ले ली। इस सीधी टक्कर में भारत के भी 109 सैनिक मारे गए। शैतान सिंह खुद जख्मी होने के बाद भी सैनिकों का हौंसला बढ़ाते रहते थे।
दो हजार से अधिक चीनी सैनिकों ने शैतान सिंह और उनके साथियों की पोस्ट पर हमला किया था। भारत के हर जवान के पास केवल 400 राउंड गोलियां थीं और हथगोले भी बेहद कम थे। भारत के 123 सैनिक हड्डियां जमा देने वाली ठंड में उन चीनी सैनिकों का मुकाबला कर रहे थे जिनके पास आपार संसाधन थे और संख्या में भी वह ज्यादा थे।
कहते हैं कि सुबह के वक्त चीनी सेना ने हमला किया था और दिन भर की लड़ाई के बाद चीनी सेना को लगा कि भारत की यह टुकड़ी संख्याबल में उतनी छोटी नहीं है जैसा वह सोच रहे थे। इसके बाद चीनी सैनिक पीछे हटने लगे।
इसी दौरान शैतान सिंह को गोलियां लग गईं। उनके साथी हवलदार ने उनसे कहा कि वे नीचे चलें ताकि इलाज शुरु किया जा सके। लेकिन शैतान सिंह ने इलाज की बजाय अपने फर्ज को प्राथमिकता दी और सैनिकों का हौंसला बढाते रहे।
एक के बाद एक सैनिक शहीद हो रहे थे। अपने साथियों की जान जाते देख कर शैतान सिंह का खून खौल उठा और घायल अवस्था में भी उन्होंने बंदूक उठा ली। उन्होंने और उनके साथियों ने अपना सर्वस्व भारत माता पर न्यौछावर कर दिया और शहीद हो गए।
शव बर्फ से ढंक गए और उनकी कहानी शायद ही दुनिया तक पहुंच पाती। दो महीने बाद जब चुशूल गांव के गड़रिए रजांगला दर्रे पर जब भेड़ चराने गए तो उन्हें सैनिकों के शव नजर आए। इस बात का पता जब भारत सरकार को चला तो एक फौजी टुकड़ी वहां पहुंची।
इस टुकड़ी ने पाया कि अंतिम सांस लेते हुए भी शैतान सिंह और बाकी भारतीय सैनिकों की उंगलियां रायफल के ट्रिगर पर थीं। कई जवानों के हाथों में हथगोले भी थे। थोड़ी दूरी पर करीब 1000 चीनी सैनिकों की लाशें भी मिलीं। मरणोपरांत शैतान सिंह को परमवीर चक्र से नवाजा गया।