जगदलपुर- समाज में आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जो अपने बीमार माता-पिता को धोखा देते हैं औरइलाज कराने के नाम पर उन्हें अस्पताल में छोड़ जाते हैं। ऐसे ही 20 से अधिक बीमार बुजुर्गों को अस्पताल से नक्टी सेमरा लाकर स्नेहगिरी मिशनरी की बहनें सेवा कर रहीं हैं। ये बुजुर्ग जीवन पर्यन्त यहीं रहते हैं और निधन होने पर पंच- सरपंचों की उपस्थिति में इनका परंपरानुसार अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।
बचपन से ही बच्चों को यह शिक्षा दी जाती है कि अपने माता-पिता की सेवा करो, किसी भी परिस्थिति में इनका साथ मत छोड़ो। माता-पिता के प्रति अगाध श्रृद्धा के कारण ही शायद हमारे देश में माता- पिता की मृत्यु पश्चात उनकी याद में पितृपक्ष मनाने की पंरपरा है, लेकिन संस्कारों का देश कहे जाने वाले हमारे भारत में ऐसे कई लोग हैं जो अपने बूढ़े माता पिता को बोझ समझते हैं और उन्हें वृद्धाश्रमों में छोड़ आते हैं।
इनमें कुछ ऐसे भी हैं जो अपने माता- पिता को धोखा देते हैं और इलाज के बहाने अस्पताल में छोड़ जाते हैं। ऐसा कृत्य बस्तर में भी हो रहा है। प्रायः ग्रामीण क्षेत्र के लोग महारानी अस्पताल में इलाज के नाम पर अपने बुजुर्गों को भर्ती तो कराते हैं और उन्हें अस्पताल प्रशासन के भरोसे छोड़ कर चले जाते हैं। ऐसे ही 20 से अधिक वृद्धजन नक्टी सेमरा और आड़ावाल स्थित आशा भवन में जीवन के बाकी दिन व्यतीत कर रहे हैं।
नगरनार मार्ग पर स्थित नक्टी सेमरा में स्नेहगिरी मिशनरी सिस्टेस (एसएमएस) है। यहां वर्ष 1994 से प्रारंभ आशा भवन में 15 वृद्धों को और आड़ावाल के आशा भवन में 15 वृद्धाओं को रखा जा रहा है। इनके लिए बाकायदा पक्का आवास तैयार किया गया है। जहां वे सुविधापूर्ण माहौल में अपना इलाज कराते आजीवन रहते हैं।
मत भूलो मां-बाप को
आशा भवन सेमरा की प्रभारी सिस्टर आशा एसएमएस बताती हैं कि मां बाप को छोड़ना सबसे बड़ी अमानवीयता है। समाज के ऐसे कई लोग हैं जो अपने माता पिता को कहीं भी छोड़ कर चले जाते हैं। उनके आश्रम में महारानी से ऐसे 20 से ज्यादा बुजुर्गों को लाया गया है। वहीं कई ऐसे वृद्धजनों को भी यहां लाया गया है जो किसी गांव में बेसहारा और बीमार मिले थे। ऐसे लोगों का यहां आजीवन इलाज चलता है और यहीं अंतिम सांसें भी लेते हैं।
परंपरानुसार अंतिम संस्कार
बताया गया कि पिछले 22 साल में 90 से ज्यादा बुजुर्गों को आशा भवन में रखा गया। इनमें से 40 लोगों की स्वाभाविक मौत हो चुकी है। चूंकि आमतौर पर ये सभी आदिवासी थे इसलिए परंपरानुसार अंतिम संस्कार गोरियाबहार श्मशान घाट और रेलवे स्टेशन के पास नक्टी सेमरा मरघट में किया गया। ऐसे समय संबंधित गांव के पंच-सरपंचों को बुलाया जाता है। वर्तमान में सेमरा आश्रम में 15 वृद्ध और आड़ावाल में 14 वृद्धा को आश्रय दिया गया है। इनमें दो दिव्यांग वृद्ध भी हैं।