खंजरपुर निवासी वाईके चौधरी ने पहले सेना में रहकर देश सेवा की। सेवानिवृत्त होने के बाद समाज सेवा को जीवन का ध्येय बना लिया। वह 105 बार रक्तदान भी कर चुके हैं।
रुड़की: इनके जीवन का मकसद सेवा है। फिर चाहे वह किसी भी रूप में की जाए। पहले सेना में रहते हुए इन्होंने देश की सेवा की और अब सेवानिवृत्ति के बाद समाज सेवा में जुट गए हैं। इनके नाम जीवन में 105 बार रक्तदान करने का रेकार्ड भी है और अन्य लोगों को भी रक्तदान के लिए जागरूक करते हैं। हम बात कर रहे हैं 57 वर्षीय वाईके चौधरी की। मूलरूप से खंजरपुर निवासी वाईके चौधरी में देशभक्ति की भावना बचपन से कूट-कूट कर भरी थी। यही वजह रही कि बड़े होकर उन्होंने सेना में जाने का निर्णय लिया। वे वर्ष 1979 में सेना में भर्ती हुए और कोर ऑफ सिग्नल में तैनाती मिली।
1997 में जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल में तैनाती के दौरान एक आतंकवादी मुठभेड़ में घुटने पर गंभीर चोट आने से इनका लिंगामेंट क्षतिग्रस्त हो गया। इस कारण 30 अक्टूबर 2003 को इन्हें सेना से सेवामुक्त कर दिया गया।बचपन से ही समाज सेवा का जज्बा दिल में रखने वाले वाईके चौधरी को सेवानिवृत्ति के बाद हाथ पर हाथ रखकर बैठना गंवारा नहीं था। ऐसे में उन्होंने मातृ भूमि की सेवा करने के बाद समाज सेवा करने का संकल्प लिया। सेवानिवृत्ति के बाद पहले जरूरतमंद लोगों के घर-घर जाकर तो अब सोशल मीडिया का सहारा लेकर दिव्यांग और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की सहायता की मुहिम चला रहे हैं।फेसबुक के माध्यम से वे दर्जनों ग्रुप से जुड़े हुए हैं, जिसके जरिये वह दिव्यांगों की समस्याएं और उनसे जुड़े समाधान बताते हैं। 2004 में उन्होंने अपने परिवार के साथ मिलकर दिव्यांगों की सहायता के लिए प्रयास संस्था बनाई।
उनकी पत्नी शिक्षिका पद्म चौधरी और बेटा प्रतीक चौधरी (कंप्यूटर इंजीनियर) इसके सदस्य हैं। उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद मिले चार लाख रुपये में से घर पर दो लाख रुपये का का एक हॉल बनाया। साथ ही दिव्यांगों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। वहीं आइआइटी रुड़की के छात्रों के साथ मिलकर आसपास के गांवों के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। काष्ठकला में निपुण चौधरी विभिन्न कॉलेजों के एनसीसी व एनएसएस इकाई के आयोजित कैंप और आइआइटी परिसर स्थित अनुश्रुति विद्यालय में छात्रों को लकड़ियों से अलग-अलग प्रकार की आकृतियां बनाना सिखाते हैं। मकसद है कि छात्र व्यवसाय के रूप में इसे अपना सकें। वे युवाओं को सेना में भर्ती होने के लिए भी प्रेरित करते हैं।
शरीर किया दान
14 अगस्त 2008 में उन्होंने मरणोपरांत अपना शरीर दान करने का फैसला लिया। उनसे प्रेरित होकर उनकी पत्नी ने भी अपना शरीर दान कर दिया। 11वीं में पढऩे के दौरान उनके बेटे ने भी शरीर दान कर सबके सामने मिसाल पेश की। उनकी माने तो वे मरते दम तक दिव्यांग और जरूरतमंदों के लिए कार्य करना चाहते हैं।