पी. नरहरी: अभाव में लाइब्रेरी की किताबें पढ़कर बना कलेक्टर

इंदौर। ‘मैं भी आप ही की तरह विषम परिस्थितियों में से गुजरकर आज इस मुकाम पर आया हूं। आपके शहर में तो कई लाइब्रेरियां हैं, लेकिन मैं जिस गांव में रहा वहां इतनी सुविधाएं नहीं थी। पिता गांव में टेलर थे और आर्थिक परिस्थितियां इस बात की इजाजत नहीं देती थी कि सारी किताबें खरीदकर ही पढ़ाई की जा सके। मैं सभी लाइब्रेरी में जाकर घंटों इसलिए ही पढ़ता था, क्योंकि मेरा लक्ष्य निश्चित था कि मुझे आईएएस बनना था। कई बार तो स्थितियां यह हो जाती थी कि लाइब्रेरी वाले मुझे घर जाने के लिए कहते थे, लेकिन वहीं मेरी लगन देखकर वे मुझे ऐसी किताबें भी घर ले जाने के लिए दे देते थे जिन्हें इश्यू करने की मनाही थी।

खाली वक्त में मैं किसी को पढ़ाकर या कुछ काम करके कुछ पैसे जमा कर लिया करता था, ताकि पढ़ाई की जरूरतों को पूरा किया जा सके। यह सब मैं केवल इसलिए ही बता रहा हूं, ताकि आप यह समझ सकें कि अच्छा मुकाम केवल सुविधाओं से ही नहीं संकल्प से पाया जा सकता।’ अपने जीवन के पन्नों पलटते हुए ये बात कलेक्टर पी. नरहरी ने संस्था रूपांकन के युवाओं से कही।

बुधवार को रूपांकन की लाइब्रेरी में युवाओं से रूबरू होने जब पी. नरहरि पहुंचे तो एक छात्र ने सवाल किया कि अभावों के चलते किस तरह मंजिल पाई जा सकती है? उन्होंने अपनी कहानी सुनाते हुए कहा कि मैं खुद ऐसी परिस्थितियों से आया हूं इसलिए आपकी परेशानियों को समझता हूं। युवाओं के साथ उनकी इस अनौपचारिक चर्चा के पहले उन्होंने वीआईपी रोड फुटपाथ पर लगने वाले स्कूल ‘कोशिश” के जरूरतमंद बच्चों से भी मुलाकात की। इस अवसर पर संस्था रूपांकन के अशोक दुबे, अरविंद मंडलोई और भारती सरवटे विशेष रूप से उपस्थित थे।

स्टूडेंट्स के सवाल कलेक्टर के जवाब

– संसाधनों के अभाव में तैयारी कैसे करें?

एकलव्य के पास संसाधन और गुरू दोनों नहीं थे फिर भी प्रबल इच्छाशक्ति से उसने ज्ञान प्राप्त किया।

– आईएएस अधिकारी बनने के लिए किस तरह से तैयारी करें?

पढ़ाई के साथ तमाम गतिविधियों में भाग लें इससे व्यक्तित्व निर्माण होगा।

– किताबें मुहैया नहीं होने पर क्या करें?

किताबें खरीदकर ही पढ़ना जरूरी नहीं वाचनालय की मदद लें।

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