नई दिल्ली। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठक के नतीजों का असर दुनियाभर के शेयर और कमोडिटी बाजार पर दिखाई दे रहा है। आशंका जताई जा रही है कि भारतीय शेयर बाजारों पर भी इसका नाकारात्मक असर दिख सकता है।
तमाम ग्लोबल मार्केट में कमजोरी के चलते भारतीय शेयर बाजार की शुरूआत भी धीमी होने का अनुमान है। एस्कोर्ट सिक्योरिटी के रिसर्च हेड आसिफ इकबाल का मानना है कि फेडरल रिजर्व की ओर से चौथाई फीसदी की बढ़ोतरी संभावित थी। लेकिन 2017 में ब्याज दरों के तेजी से बढ़ाए जाने की बात से तमाम एशियाई बाजारों में गिरावट देखने को मिल रही है जिसका असर भारतीय शेयर बाजार पर भी दिखेगा।
आसिफ के मुताबिक भारतीय शेयर बाजार में 8100 का स्तर निफ्टी के लिहाज से अहम होगा। आज की कमजोरी में अगर निफ्टी 8100 के स्तर को होल्ड करता है तो बाजार में वापसी की उम्मीद है। इसके विपरीत 8100 के स्तर को तोड़कर निफ्टी का टिकना बाजार में बिकवाली हावी होने की संभावना को मजबूत करता है।
इस बीच, प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर इंडेक्स 102.38 के स्तर पर पहुंच गया, जो जनवरी 2003 के बाद अब तक सबसे ऊंचा स्तर है। डॉलर इंडेक्स में आए इस उछाल के चलते तमाम एशियाई शेयर बाजार में भी गिरावट देखने को मिल रही है। एक्सपर्ट मान रहे हैं कि इसका असर भारतीय शेयर बाजार पर भी देखने को मिल सकता है और शुरूआत हल्की गिरावट के साथ होने की संभावना है।
सुबह 8:30 बजे प्रमुख चाइनीज इंडेक्स हैंगसैंग 1.86 फीसदी की गिरावट के साथ 22039 के स्तर पर कारोबार कर रहा है। वहीं शंघाई में 0.42 फीसदी की गिरावट है। जापानी इंडेक्स निक्केई 0.15 फीसदी की गिरावट के साथ 19225 के स्तर पर है और कोरिया का इंडेक्स कोस्पी 0.33 फीसदी की गिरावट के साथ 2030 के स्तर पर कारोबार कर रहा है। इससे पहले अमेरिकी शेयर बाजार भी गुरूवार की सुबह गिरावट के साथ बंद हुए। प्रमुख इंडेक्स डाओ 0.60 फीसदी की गिरावट के साथ 19792 के स्तर पर, एसएंडपी 0.81 फीसदी की गिरावट के बाद 2253 के स्तर पर और नैस्डेक 0.50 फीसदी की गिरावट के साथ 5436 के स्तर पर बंद हुए।
फेडरल रिजर्व ने चौथाई फीसदी बढ़ाई ब्याज दरें
बुधवार को खत्म हुई बैठक में अमेरिकी फेरडरल रिजर्व बैंक ने ब्याज दर में चौथाई फीसदी का इजाफा किया है। बढ़ोतरी के बाद फेडरल फंड की रेट 0.50 से 0.75 फीसदी हो जाएगी। यह बढ़ोतरी साल की पहली और बीते 10 वर्षों में यह फेडरल रिजर्व की ओर से की गई दूसरी बढ़ोतरी है। इससे पहले दिसबंर 2015 में फेड की ओर से चौथाई फीसदी की बढ़ोतरी की गई थी। ब्याज दरें बढ़ने का सीधा सा मतलब यह है कि अमेरिका में मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज अब महंगे हो जाएंगे।