ब्रह्म पुराण के अनुसार खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नर्क का भागी होता है। अर्थात चाहे व्यक्ति अल्पायु हो या दीर्घायु।
खरमास, यानि खराब महीना. वो महीना जब हर प्रकार के शुभ काम बंद हो जाते हैं। कोई नया काम शुरू नहीं किया जाता, इस मास के साथ आती है कई प्रकार की बंदिशें और साथ ही ये सलाह भी कि ज़रा बच कर रहिएगा, ज़रा सोच समझकर काम कीजिएगा। कलसे पौष मास (खरमास) शुरू हो रहा है, जो 16 जनवरी तक रहेगा। पौष मास का शास्त्रों में अत्यधिक महत्व बताया गया है। सूर्य प्रतिकूल हो तो हर कार्य में असफलता नजर आती है। भारतीय पंचांग पद्धति में प्रतिवर्ष पौष मास को खर मास कहते हैं। इसे मलमास काला महीना भी कहा जाता है।
पौष मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जा सकता। लेकिन इस मास में भी कुछ योग होते हैं, जिनमें अति आवश्यक परिस्थितियों में कुछ कार्य किए जा सकते हैं। पंडितों का कहना है कि पौष मास के समय अति आवश्यक परिस्थिति में सर्वार्थ सिद्ध योग, रवि योग, गुरु पुष्य योग अमृत योग में विवाह के कर्मों को छोड़कर अन्य शुभ कार्य किए जा सकते हैं। लेकिन ये शुभ कार्य अति आवश्यक परिस्थिति में ही कर सकते हैं।
वर्ष भर में दो बार खरमास आता है। जब सूर्य गुरु की राशि धनु या मीन में होता है। खरमास के समय पृथ्वी से सूर्य की दूरी अधिक होती है। इस समय सूर्य का रथ घोड़े के स्थान पर गधे का हो जाता है। इन गधों का नाम ही खर है। इसलिए इसे खरमास कहा जाता है। जब सूर्य वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश करता है। इस प्रवेश क्रिया को धनु की संक्रांति कहते हैं। यही मलमास है।
सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही खर मास में किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नर्क का भागी होता है। अर्थात चाहे व्यक्ति अल्पायु हो या दीर्घायु अगर वह पौष के अन्तर्गत खर मास यानी मल मास की अवधि में अपने प्राण त्याग रहा है तो निश्चित रूप से उसका इहलोक और परलोक नर्क के द्वार की तरफ खुलता है। इस बात की पुष्टि महाभारत में होती है जब खर मास के अंदर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों से बेध दिया था। सैकड़ों बाणों से घायल हो जाने के बावजूद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण यही था कि अगर वह इस खर मास में प्राण त्याग करते हैं तो उनका अगला जन्म नर्क की ओर जाएगा।
बसंत पंचमी पर है शुभ मुहूर्त
बसंतपंचमी का पर्व माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 1 फरवरी, 2017 में मनाया जायेगा। बसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीविष्णु, श्री कृ़ष्ण-राधा शिक्षा की देवी माता सरस्वती की पूजा पीले फूल, गुलाल, अर्घ्य, धूप, दीप, आदि द्वारा की जाती है। पूजा में पीले मीठे चावल पीले हलवे का श्रद्धा से भोग लगाकर, स्वयं इनका सेवन करने की परम्परा है। 1 फरवरी 2017 को बसंत पंचमी और 28 अप्रैल को संपन्न होने वाला अक्षय तृतीया के पर्व में भी इस वर्ष विवाह के सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त रहेंगे।
ये बनते हैं योग
पंडितने बताया कि पौष मास (खरमास) में 15 दिसंबर, 21, 24, 26, 31 दिसंबर को सर्वार्थ सिद्ध योग बनता है और यही योग 5 जनवरी, 6, 9,12 जनवरी को भी रहेगा। 6 जनवरी को सर्वार्थ सिद्ध और अमृत योग बनता है। इस सभी दिनों में व्यक्ति अति आवश्यक परिस्थिति में ही गृह प्रवेश सहित अन्य शुभ कार्य कर सकते हैं।