
किस बात का है डर
इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार बैंकों के पास डिपॉजिट रिस्क लेवल पर पहुंच गया है। ऐसे में आरबीआई को लिक्विडिटी कंट्रोल करने के लिए कुछ खास खदम उठाने होंगे। जिससे कि उसका इकोनॉमी पर निगेटिव इम्पैक्ट न हो। इसके लिए आरबीआई सीआरआर में बढ़ोतरी कर सकता है। अभी सीआरआर 4 फीसदी पर है। सीआरआर में बढ़ोतरी कर आरबीआई बैंकों में मौजूद एक्सट्रा लिक्विडिटी को कंट्रोल कर सकता है। हालांकि इस असर रेट कट की संभावनाओं पर निगेटिव हो सकता है।
शॉर्ट टर्म में परेशानी
बैंकर सुनील पंत के अनुसार बैंकों के पास पैसा दो तरह से होता है। एक तो ऐसा पैसा जिसका फ्लो बना रहता है। दूसरा ऐसा पैसा जो कि डिपॉजिट के रुप में बैंकों के पास पड़ा रहता है। डिमोनेटाइजेशन के बाद जो स्थिति बनी है, ऐसे में कैश का फ्लो बढ़ गया है। जिसे देखते हुए आरबीआई को लिक्विडिटी कंट्रोल करने के कदम उठाने होंगे। शॉर्ट टर्म में आरबीआई सीआरआर बढ़ा सकता है। हालांकि लांग टर्म इसका फायदा मिलने वाला है। इस बात के संकेत अभी से मिलने लगे हैं। बैंकों ने बिना आरबीआई की पहल के ही डिपॉजिट रेट घटाने शुरू कर दिए हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में लोगों को सस्ते कर्ज मिलेंगे।
ग्रोथ रेट गिरने की आशंका
मूडीज की सॉवरेन ग्रुप एसोसिएट एमडी मैरी डिरोन ने कहा, ‘शार्ट टर्म में डीमोनेटाइजेशन से जीडीपी की ग्रोथ पर दबाव पड़ेगा और इससे सरकार का रेवेन्यु प्रभावित होगा। लॉन्ग टर्म में इससे टैक्स रेवेन्यु बढ़ाने में मदद मिलेगी और यह सरकार के ऊंचे कैपिटल एक्सपेंडिचर में तब्दील होगा और फिस्कल कंसॉलिडेशन को मजबूती मिलेगी।
कॉरपोरेट्स के लिए भी शार्ट टर्म चैलंज
मूडीज कॉरपोरेट फाइनेंस ग्रुप की एमडी लॉरा एकरेज ने कहा कि कंपनियों की इकोनॉमिक एक्टिविटीज घटेंगी। उनका सेल और कैश फ्लो प्रभावित होगा। सीधे रिटेल बिक्री से जुड़ी कंपनियां बुरी तरह प्रभावित होंगी। उन्होंने कहा कि हालांकि इकोनॉमिक और फाइनेंशियल एक्टिविटीज के फॉर्मलाइजेशन से सरकार को टैक्स बढ़ाने में मदद मिलेगी, साथ ही फाइनेंशियल सिस्टम का विस्तार होगा जो इकोनॉमी के लिए लांग टर्म में पॉजिटिव होगा।