मन में आए ब्रेकअप का ख्याल तो पहले करें ये काम

वैसे तो किसी भी रिश्ते को अंत तक मौका देना चाहिये. लेकिन अगर एक वक्त और ढेरों मशक्कत के बावजूद चीज़ें पटरी पर न लौट पाएं, तो मान लीजिये कि उस रिश्ते की ज़िंदगी बस इतने दिनों तक की ही थी.

रिश्ता दोस्ती का हो या प्यार का, शादी हो या सगाई, निजी जीवन से जुड़े किसी भी रिश्ते से खुद को अलग करने से पहले ‘आखिरी कोशिश’ ज़रूर करें, ताकि कल को आपको ‘काश’ कहने की नौबत न आए.
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एक दूसरे से बात करें
वैसे तो बात करके किसी भी समस्या या मनमुटाव का हल निकालने वाला फॉर्मूला हर किसी को पता है. लेकिन इसपर अमल कितने लोग करते हैं? इगो और गुस्से के कारण हम रिश्ते को सबसे कारगार घुट्टी पिलाना ही नज़रअंदाज़ कर देते हैं. अगर बात ब्रेकअप तक पहुंच गई है तो ज़ाहिर है सामने वाले से किसी भी पहल की उम्मीद रखना खुद को तकलीफ पहुंचाने के बराबर होगा. इसलिए आप खुद सामने वाले से बात करने की कोशिश करें, वो राज़ी न हो तो किसी स्मार्ट तरीके से अपनी बात रखें और उनका नज़रिया भी जानने की कोशिश करें.

बदलाव को अपनाना सीखें
अमूमन दो लोगों को एक दूसरे से शिकायत होती है कि वो ‘पहले जैसा नहीं रहा’ या वो ‘बदल गई है’. लेकिन हम ये क्यों भूल जाते हैं कि अगर बदलाव सामने वाले में आया है, तो खुद आपकी ज़िंदगी, लाइफस्टाइल और तौर-तरीके में भी तो परिवर्तन आया है! याद रखें बदलाव प्रकृति का नियम है, कोई इससे अछूता नहीं.

याद करें, आखिर क्यों आपको उनसे प्यार हुआ था
जिस शख्स को आप आज इतना नापसंद कर रहे हैं कि रिश्ता तक तोड़ने की नौबत आ गई, एक वक्त था जब उसी शख्स के आस-पास रहना, उससे बातें करना आपको सुकून देता था. याद रखें हर रिश्ते में एक वक्त बाद नीरसता आ जाती है. इसकी चमक वापस लाने की ज़िम्मेदारी वैसे तो दोनों की है, लेकिन अगर आपको सामने वाले की तरफ से कोई एफर्ट नहीं दिख रहा, तो उदास या परेशान होने की बजाए इस बात पर गौर करें कि आखिर सामने वाले की किस खासियत ने आपको प्रभावित किया था. अगर वो बात, वो गुण उनमें आज भी मौजूद है, तो ब्रेकअप का ख्याल दिमाग से निकाल दीजिये. फिर सामने वाला कोई कोशिश करे या न करे, आप उस ‘स्पार्क’ को वापस लाने की अपनी कोशिश जारी रखें.
ज़रा सोचें, उनके साथ या उनके बिना आपकी ज़िंदगी कैसी होगी?
जिस पल दिमाग में ब्रेक अप का ख्याल आए, एक दफा इस बात पर गौर ज़रूर करें कि अगर कल वो शख्स आपकी ज़िंदगी से दूर चला गया तो आपको कितना फर्क पड़ेगा. इस एक्सरसाइज़ के बाद आपको फैसला लेने में ज़रूर मदद मिलेगी.

बेतुकी है ‘लव इज 50-50’ वाली बात
प्यार और सौदे में फर्क होता है (फिल्मी डायलॉग!). दो बिजनेस पार्टनर्स के बीच जहां सबकुछ 50:50 होता है, वहीं लाइफ पार्टनर्स के बीच ऐसा कोई गणित काम नहीं कर सकता. यह 30:70 या 90:10 भी हो सकता है. यहां स्कोर मेंटेन करने की या जैसे को तैसा बर्ताव करने का मंच तो बिलकुल भी नहीं है. इसलिए ये फैसला आप को करना है कि आप इस रिश्ते पर कितना काम करना चाहते हैं.

खुद के प्रति ईमानदारी दिखाएं और सोच समझकर फैसला करें. रिश्ता तोड़ना है या उसे कायम रखना है, ये फैसला आपका ही होना चाहिए. लेकिन जो भी करें ‘वो आखिरी कोशिश’ किए बिना पूर्णविराम न लगाएं!

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