महबूबा ने सीख लिया सत्ता संतुलन का गुरुमंत्र, इस रणनीति से चला रही हैं सरकार

मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने गठबंधन के दांवपेंच सीख लिए हैं। वह कश्मीर में पत्थरबाजों के साथ न सिर्फ नरमी दिखाना चाहती हैं, बल्कि राहत पैकेज पर भी काम कर रही हैं। साथ ही सहयोगी दल भाजपा के गुस्से को शांत करने का हुनर भी आजमाती हैं।

वह भाजपा और केंद्र पर एजेंडा आफ अलायंस लागू करने के दबाव बना रही हैं, लेकिन कश्मीर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की भी खुलकर सराहना करते नहीं थकतीं। वह अलगाववादियों से बातचीत की वकालत तो करती हैं, लेकिन हुर्रियत के प्रति केंद्र सरकार के कठोर रुख को भांपते हुए मौका मिलते ही हुर्रियत को जमकर कोसने से भी नहीं चूकतीं। इस बार भी महबूबा ने डायलॉग प्रक्रिया शुरू नहीं होने के लिए हुर्रियत पर आंखें तरेरी हैं और अमन बहाली के प्रयासों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की वाह-वाह की है।

पत्थरबाजों के परिवार को 5 लाख के मुआवजे का किया था एलान

कश्मीर में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे गए पत्थरबाजों के परिवार को 5 लाख के मुआवजे और परिवार से एक को नौकरी का एलान किया तो भाजपा कोपभवन में जा बैठी। महबूबा ने अमरनाथ आंदोलन के पीड़ितों को मुआवजा और पाक जेल में मारे गए चमेल सिंह के परिवार को मदद की घोषणा कर भाजपा के गुस्से को शांत कर दिया। जब विपक्ष हुर्रियत से बातचीत के लिए जोर डालने लगी तो महबूबा ने गतिरोध के लिए हुर्रियत को ही जिम्मेदार बताया। विधान परिषद में महबूबा ने कहा कि कश्मीर में हिंसा के बाद कश्मीर आई केंद्रीय टीम के सदस्यों ने सबसे बातचीत की पहल की थी, लेकिन इस पहल को ठुकरा दिया गया। इससे पूरे देश में गलत संदेश चला गया कि वे लोग बातचीत नहीं करना चाहते हैं।

सभी से बातचीत करने पर दिया जोर

हर्रियत के सलूक से कश्मीर के हमदर्द लोगों की नजर में भी छवि बिगड़ी। सीताराम येचुरी, शरद यादव और डा. राजा को कुछ दरवाजों से बैरंग लौटना पड़ा। अब इसको ठीक करने में वक्त लगेगा। विपक्ष द्वारा हुर्रियत से वार्ता पर जोर दिए जाने पर सफाई देते हुए महबूबा ने कहा कि सभी पक्षों से बातचीत रियासत सरकार के एजेंडा आफ अलायंस में है। कश्मीरियों की नाराजगी खत्म करने के लिए महबूबा कहती हैं कि वह जख्म पर मरहम लगाने निकली हैं। वह कश्मीरियत की याद दिलाती हैं, लेकिन जम्मू के बेहतर माहौल की प्रशंसा से भी नहीं चूकतीं। उन्होंने कहा कि जम्मू में कोई भी कहीं बस सकता है। मुस्लिमों, कश्मीरी पंडितों का भेदभाव जम्मू में नहीं है, लेकिन कश्मीर में पंडितों की वापसी और ट्रांजिट कालोनी को मुद्दा बना दिया जाता है।

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