हजारों वर्ष पहले महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था। लेकिन यह सवाल हर किसी के जहन में उठ सकता है कि महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में ही क्यों?
यह युद्ध कहीं और भी हो सकता था। लेकिन सत्य यह है कि यह सब कुछ ‘शुभ और अशुभ’ विचारों एवं कर्मों के संस्कार भूमि में देर तक समाए रहते हैं।
दरअसल कुरुक्षेत्र में युद्ध लड़े जाने का फैसला भगवान श्री कृष्ण का था। जब महाभारत युद्ध होने का निश्चय हो गया तो उसके लिये जमीन तलाश की जाने लगी। भगवान श्रीकृष्ण गलत भावना से ग्रस्त व्यक्तियों को उस युद्ध के द्वारा नष्ट कराना चाहते थे।
लेकिन यह युद्ध भाई- भाई, गुरु- शिष्य, सम्बन्धी- कुटुम्बियों के मध्य होना था। एक दूसरे को मरते हुए देखकर आपसी संबंधी कहीं सन्धि न कर बैठें, इसलिए ऐसी भूमि युद्ध के लिए चुननी चाहिए जहां क्रोध और द्वेष के संस्कार पर्याप्त मात्रा में हों। उन्होंने अनेकों दूत अनेकों दिशाओं में भेजे कि वहां की घटनाओं का वर्णन आकर उन्हें सुनाएं।
श्रीकृष्ण के एक दूत ने उन्हें बताया कि कुरुक्षेत्र में एक बड़े भाई ने छोटे भाई को एक काम सौंपा। काम था खेत की मेड़ से बहते हुए, वर्षा के पानी को रोकना। लेकिन छोटे भाई ने काम करने से मना कर दिया।
तब भाई आग बबूला हो गया। उसने छोटे भाई मार डाला उसकी लाश को ले जाकर हुआ उस मेड़ के पास ले गया और जहां से पानी निकल रहा था वहां उस लाश को पैर से कुचल कर लगा दिया।
इस नृशंसता को सुनकर श्रीकृष्ण ने निश्चय किया यह भूमि भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है। यहां पहुंचने पर उनके मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ेगा उससे परस्पर प्रेम उत्पन्न होने या सन्धि चर्चा चलने की सम्भावना नहीं रहेगी। महाभारत के लिए कुरुक्षेत्र बेहतर था। इसीलिए श्रीकृष्ण ने कुरूक्षेत्र को ही चुना।
इसीलिए कहते भी है कि हमें ऐसी भूमि में ही निवास करना चाहिए जहां शुभ विचारों और शुभ कार्यों का समावेश रहा हो।