मुलायम सिंह यादव अपनी राजनीतिक विरासत बेटे अखिलेश को सौंपने का मन बनाते, इससे पहले ही चुनाव आयोग ने अखिलेश को 24 साल पहले पुरानी सपा की कमान सौंप दी और साइकिल का हकदार मुलायम के मुकाबले अखिलेश को मान लिया। यह मुलायम सिंह यादव की हार और अखिलेश यादव की जीत है, यह कहना अभी मुश्किल होगा।
हालांकि, सोमवार को आए चुनाव आयोग के फैसले के बाद यह अहम सवाल बन गया है कि मुलायम अब सपा के सरंक्षक की भूमिका में रहेंगे या फिर अपनी साइकिल वापस लेने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। मुलायम सिंह यादव के पास ये दोनों रास्ते खुले हुए हैं। चुनाव आयोग ने अखिलेश को साइकिल की सवारी करा दी तो अखिलेश ने भी बड़े मन का परिचय देते हुए मुलायम सिंह के आवास जाकर उनसे मुलाकात की। कुछ ही घंटे पहले वह कार्यकर्ताओं से शिकायत कर रहे थे अखिलेश सुन नहीं रहे हैं, बात नहीं कर रहे हैं।
उन्हें अहसास हो गया है कि पार्टी के ज्यादातर छोटे बड़े नेता, अधिकांश कार्यकर्ता, विधायक उनसे छिटक कर अखिलेश यादव के साथ आ गए हैं। अपने सियासी जीवन की सबसे कठिन चुनौती से जूझ रहे मुलायम के लिए अब खुद को साबित करना है। कुछ समय पहले मुलायम ने कहा था कि हमने तुम्हें मुख्यमंत्री बनवाया। अपने बूते चुनाव जीत कर दिखलाओ। मुख्यमंत्री अखिलेश पिता की चुनौती को तोहफे में बदलने के लिए निकल पड़े हैं। अगर मुलायम खेमे ने प्रत्याशी न भी उतारे तो भी मुख्यमंत्री अखिलेश को चुनावी रण में अपने लोगों से परोक्ष रूप से प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ेगा।
ऐसे में मुलायम की भूमिका अहम रहेगी। चुनावी जनसभाओं में मुलायम क्या खामोश रहेंगे या परिवार के झगड़े की कहानी बता कर जनता से सहानुभूति लेने का काम करेंगे। या सब भूल कर बेटे के समर्थन में जनसभाएं करेंगे यह सब जल्द साफ होगा।