पुलिस बदनाम है कि वह बवाल के हमेशा काफी देर बाद पहुंचती है। इसका कारण पुलिस तक सूचना का देरी से पहुंचना भी होता है। आगरा के अंबेडकर विश्वविद्यालय के विद्वानों ने सीआईआईएल मैसूर, यूके के विद्वानों के साथ मिलकर ऐसा प्रोजेक्ट तैयार किया है जिससे बवाल से पहले ही पुलिस का अलार्म बज जाएगा। यह संभव होगा सेंसर आधारित सॉफ्टवेयर से जो माहौल की आक्रामकता को पहले ही भांप लेगा।
अमूमन बड़े शहरों में सुरक्षा के मद्देनजर सीसीटीवी कैमरे लगे होते है झगड़ा या अपराध होने के दौरान ये कैमरे इन्हें रोकने में मददगार नहीं हो सकते। इसके लिए गुस्से के माहौल की आवाज, बातचीत की ‘टोन’ बड़ी भूमिका निभा सकती है।
आगरा विवि का भाषा विज्ञान विभाग, हडर्स विवि यूके, जेएनयू दिल्ली, माइक्रोसॉफ्ट और सीआईआईएल मैसूर के विद्वान इस दिशा में काम कर रहे थे। ‘यूके-इंडिया एजुकेशन एंड रिचर्स इनीशिएटिव्स’ के तहत विद्वानों के बीच ‘टीमेटिक पार्टनरशिप’ हुई थी। इसके तहत आवाज, शरीर के हावभाव से गुस्से की पहचान पर शोध किया गया।
‘कम्प्यूटेशनल लिंग्विस्टिक’ का सहारा लिया गया। कैमरे के साथ उच्च क्षमता के वायस सेंसर्स लगाए गए हैं। जो हल्की आवाज को भी पकड़कर उसकी टोन पहचान लेंगे। जैसे दिमाग गुस्से या आक्रामकता की पहचान करता है, वैसे ही इसके फीचर इन्सानी दिमाग की तरह मानव भाषा को पहचान पाएंगे। प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो गया है और जनवरी 2017 में यह पुलिस के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध करा दिया जाएगा।
नेताओं की स्पीच का लिया सहारा
अमूमन नेताओं के भाषण में गुस्सा, आक्रामकता और भड़काने वाली भाषा का इस्तेमाल होता है। पहचान के लिए साफ्टवेयर में नेताओं की तमाम तरह की स्पीच डाली गई। इसके अलावा फिल्मों के संवाद, भीड़ की आवाज की तमाम रिकार्डिंग साफ्टवेयर में डाली गई हैं।
अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने खोजा फार्मूला
हडर्स विवि यूके के प्रो. डेनियल काडर, डॉ. लिज होल्ट, आगरा विवि के डॉ. रीतेश कुमार, जेएनयू दिल्ली के प्रो. गिरीश नाथ झा, अतुल ओझा, यूके के डॉ. जिम ओडरिस कॉल, यूनिवर्सिटी अटफ सरे यूके की डॉ. रोजाना मार्कवेज, माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च सेंटर बेंगलुरु की कलिका बाली, सीआईआईएल मैसूर की बोरनिनी लाहिरी ने इस फार्मूले पर काम किया है।
भीड़ वाली जगहों पर लगाना मुनासिब
साफ्टवेयर को भीड़भाड़ वाली जगहों या कुछ खास स्थानों पर लगाया जा सकता है। मसलन एटीएम, अंधेरी जगहों, बसों में, व्यस्त बाजारों में, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, पुलिस के लिए सिरदर्द बनी जगहों पर किया जा सकता है। महिलाओं के लिए पहले से चिह्नित खतरे वाले इलाकों में इसका इस्तेमाल कारगर सिद्ध हो सकता है।