मंदिर वो स्थान है जहां सकारात्मक ऊर्जा हमेशा रहती है। इसका कारण है यहां स्वयं साक्षात् ईश्वर का होना। लेकिन सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का अहसास यदि करना चाहते हैं तो यह मंदिर के गर्भगृह में मौजूद रहती है।
मंदिर के गर्भगृह में जहां मूर्ति स्थापित होती है। वहां अमूमन अंधेरा होता है। ऐसे में यदि वहां कपूर जल रहा हो और उस जलते कपूर का अक्स अपनी आंखों में लगाते हैं तो यह आपकी आंखों को बहुत अधिक लाभदायक होता है।
जब हम मंदिर में प्रवेश करते हैं तो हमारी पांचों ज्ञानेंद्रिय सक्रिय हो जाती है। इस बात की पुष्टि विज्ञान भी करता है। मंदिर की संरचना और स्थान के पीछे जितनी भी वैज्ञानिक शोध हुए उनके अनुसार, मंदिर में मौजूद गर्भगृह जहां मूर्ति स्थापित होती है सकारात्मक ऊर्जा का भंडार होती है। एक ऐसा स्थान जहां उत्तरी छोर से स्वतंत्र रूप से चुम्बकीय और विद्युत तरंगों का प्रवाह हो।
अमूमन ऐसे ही स्थान का चयन करके विधिवत मंदिर का निर्माण करवाया जाता है, ताकि लोगों के शरीर में अधिकतम सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। गर्भगृह हो या मंदिर यहां भगवान की मूर्ति को बिल्कुल मध्य स्थान पर स्थापित किया जाता है। क्योंकि यहां सबसे अधिक सकारात्मक ऊर्जा होती है।