योगशक्ति से एक गाय ने दिया था मनुष्य को जन्म!

पौराणिक काल में तुंगभद्रा नदी के किनारे ‘रम्य’ नगर था। उस नगर में आत्मदेव नाम का ब्राह्मण रहता था। आत्मदेव की पत्नी सुंदर तो थी, लेकिन हठ करना उसे पसंद था। उनकी कोई सन्तान नहीं थी।

जब आत्मदेव तथा उसकी पत्नी की युवा अवस्था ढलने लगी तो एक दिन आत्मदेव दुःखी होकर घर से चल दिए। चलते-चलते वह एक तालाब के पास पहुंचे। वह रुककर विश्राम करने लगे। उसी समय उस तालाब के पास एक संन्यासी आए।

आत्मदेव ने आप-बीती कह सुनाई। संन्यासी ने कहा कि, ‘हे ब्राह्मण तुम्हारे भाग्य में सन्तान सुख नहीं है फिर भी मैं तुम्हें अपने योग बल से एक सन्तान प्रदान करूंगा। संन्यासी ने आत्मदेव को एक फल देकर कहा कि योगशक्ति से सम्पन्न इस फल को अपनी पत्नी को खिला देना।’

आत्मदेव प्रसन्न होकर घर वापस चला आया और अपनी पत्नी को पूरा वृत्तांत सुनाकर फल दे दिया। पत्नी ने कहा कि वह फल को खा लेगी। आत्मदेव उसके बाद कुछ दिनों के लिए प्रवास पर चला गया।

आत्मदेव के जाने के बाद उसकी पत्नी ने सोचा, ‘यदि मैं इस फल को खा लूंगी तो मेरे गर्भ में बच्चा आ जायेगा, मेरा पेट फूल कर बड़ा हो जायेगा, चलना-फिरना आहार- विहार आदि सभी जाते रहेंगे, नौ महीने तक कष्ट सहन करना पड़ेगा और फिर प्रसव का कष्ट तो मुझसे सहा ही नहीं जायेगा। हो सकता है प्रसव के कष्ट से मेरे प्राण ही निकल जाएं। बच्चे का लालन-पालन भी तो एक कष्टकर कार्य है। मैं वह कैसे कर पाऊंगी। यह सब सोचकर उसने फल को अपनी गाय को खिला दिया।

पति के वापस आने पर उसने झूठ बोला कि उसने फल खा लिया था। समय बीतता गया। तब किसी को शक न हो इसीलिए अपनी छोटी बहन, जो कि गर्भ से थी, को अपनी समस्या बताई तो छोटी बहन ने कहा कि वह अपनी सन्तान को चुपचाप उसे लाकर दे देगी।

छोटी बहन के पुत्र होने पर वह उसे अपनी बड़ी बहन को दे गई और आत्मदेव ने यही समझा कि उसका पुत्र हुआ है। उस लड़के का नाम धुंधकारी रखा गया। कुछ काल बाद ब्राह्मण की गाय ने एक सर्वांग सुन्दर, स्वर्ण के समान रंग वाले दिव्य पुत्र को जन्म दिया। गाय के पुत्र का नाम गोकर्ण रखा गया। इस प्रकार से गोकर्ण का जन्म हुआ।

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