राज्य में स्मार्ट कार्ड से मरीजों का फ्री इलाज, जानिए कैसे…..

रायपुर- राज्य में अब स्मार्ट कार्ड से फ्री इलाज का जिम्मा रिलायंस की लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को मिल गया है। 1 नवंबर से कंपनी काम संभालेगी। पिछले सात साल में जब से स्मार्ट कार्ड से फ्री इलाज की सुविधा शुरू हुई है, तब पहली बार किसी प्राइवेट बीमा कंपनी को इलाज का जिम्मा सौंपा गया है।
अभी न्यू इंडिया इंश्यारेंस कंपनी स्मार्ट कार्ड से इलाज करवा रही थी। कंपनी को पिछले दो साल से लगातार करोड़ों का नुकसान हो रहा था। इस वजह से कंपनी ने इस साल अपना अनुबंध आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया था। कंपनी के ठेके की अवधि 31 दिसंबर को समाप्त हो रही है। दो महीने पहले कंपनी को अनुबंध आगे बढ़ाने का ऑफर दे दिया गया था।
कंपनी के इनकार के बाद टेंडर की प्रक्रिया शुरू की गई। टेंडर में सबसे प्रति परिवार सबसे कम प्रीमियम रिलायंस की लाइफ इंश्यारेंस कंपनी ने ऑफर किया है। दूसरी कंपनी बजाज की है। उसके बाद एक सरकारी बीमा कंपनी का प्रीमियम है। स्वास्थ्य विभाग के अफसरों का कहना है कि प्रीमियम की दरों के हिसाब से ही प्राइवेट बीमा कंपनी का ठेका फायनल किया गया है।cardimg
अभी 363 प्रीमियम, नया ठेका 394 में
न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को प्रति परिवार 363 रुपए प्रीमियम के हिसाब से मरीजों का इलाज करवाने का ठेका दिया गया था। नया ठेका 394 रुपए प्रति परिवार के हिसाब से दिया गया है। राज्य में 56 लाख परिवार और इतने ही स्मार्ट कार्ड हैं। उसी हिसाब से प्रीमियम अदा किया जाएगा। हालांकि पिछली कंपनी को खासा नुकसान उठाना पड़ा था। दो साल में ही दो सौ करोड़ से ज्यादा नुकसान होने का पता चला है। इसी वजह से नई कंपनी ने प्रीमियम की राशि बढ़ाई है।
क्या है प्रीमियम का फंडा
सरकार बीमा कंपनी को इलाज के लिए अनुबंधित करती है। सरकार की ओर से बीमा कंपनी को एक कार्ड के लिए 363 रुपए भुगतान करती है। एक कार्ड में अधिकतम एक परिवार के पांच लोगों को शामिल किया जाता है। बीमा कंपनी 363 रुपए का बीमा करने के बाद एक साल तक उस परिवार का इलाज करवाने की जिम्मेदारी लेती है और उसमें आने वाले खर्च का भुगतान खुद करती है। अब नई कंपनी को 394 रुपए प्रति कार्ड भुगतान किया जाएगा। इस तरह नए टेंडर में प्रीमियम की रकम बढ़ाने से बीमा कंपनी ज्यादा रकम मिलेगी।
सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में 50 करोड़ फंसे
सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के अभी 50 करोड़ फंसे हैं। यह पूरे राज्य का आंकड़ा है, लेकिन सबसे ज्यादा पैसे राजधानी के अस्पतालों के हैं। इनमें कुछ अस्पताल तो ऐसे हैं, जिनका एक-एक करोड़ का भुगतान अटका है। अब ठेका बदल जाने से डाक्टरों खास तौर पर प्राइवेट अस्पताल के डाक्टरों में खलबली मची है। नया ठेका फायनल होने की खबर फैलने के बाद से ही रोज कई बड़े अस्पतालों के प्रबंधक नोडल एजेंसी के कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। उनकी आेर से दबाव डाला जा रहा है कि उनका रुका हुआ भुगतान दिसंबर के दूसरे हफ्ते तक दिलवा दिया जाए। कंपनी की ओर से भुगतान की रफ्तार बेहद धीमी है। इसे लेकर कई बार विवाद भी हो चुका

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