शराबबंदी का फॉलोअप!

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्ण शराबबंदी का लक्ष्य हासिल करने के लिए जिस दृढ़ता का परिचय दिया, उससे हासिल आत्मविश्वास का ही नतीजा है कि उन्होंने शराबमुक्त बिहार के बाद अब नशामुक्त बिहार का आह्वान किया है। उन्होंने इसके लिए फिलहाल कोई सरकारी कार्यक्रम घोषित नहीं किया है। जाहिर है कि इसके लिए कोई हड़बड़ी नहीं है। शराबबंदी का प्रकरण अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इस बीच नशामुक्त बिहार के सवाल पर मुख्यमंत्री को जनता की नब्ज परखने का मौका भी मिल जाएगा। यह एक ऐसी परिकल्पना है जिसे पूर्ण शराबबंदी का फॉलोअप कहा जा सकता है। व्यापकता की दृष्टि से नशामुक्ति कहीं अधिक कठिन लक्ष्य है यद्यपि सुविधा यह है कि सरकार के पास शराबबंदी लागू करने का अनुभव है। यदि मुख्यमंत्री नशामुक्त बिहार की राह पर उसी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ेंगे जो उन्होंने शराबबंदी के मामले में दिखाई तो दो राय नहीं कि उन्हें शराबबंदी के मुकाबले ज्यादा समर्थन मिलेगा। इसकी एक वजह यह है कि शराबबंदी के प्रयोग ने सरकारी तंत्र से लेकर आम आदमी तक में यह भरोसा पैदा किया है कि यह संभव है। शुरू में जो लोग शराबबंदी का विरोध कर रहे थे, उनमें अधिसंख्य लोग अब इसके पक्ष में खड़े हैं। इसके अलावा शराबबंदी से जुड़ीं सफलता-गाथाएं भी नशामुक्ति अभियान को ताकत देंगी। खासकर महिलाएं इस अभियान को हाथों-हाथ लेंगी जिन्होंने शराबबंदी मुहिम में भी निर्णायक भूमिका निभाई। सबसे अहम बात यह है कि इस समय बिहार में इस तरह के अभियान की जमीन तैयार है। सरकार ने शराबबंदी के लिए जो गहन कवायद की है उसे ही विस्तार देकर नशामुक्ति लागू की जा सकती है। शराबबंदी और नशाबंदी में एक महत्वपूर्ण फर्क यह है कि हर तरह का नशा करने वालों की तादात सिर्फ शराब पीने वालों के मुकाबले बहुत अधिक है। शराब पीने वाले भी शराब को अच्छा नहीं कहते, लेकिन जर्दा-गुटखा से लेकर भांग, बीड़ी, सिगरेट जैसे तमाम ऐसे नशे हैं जिनके आदी लोग इसके हानि-लाभ को लेकर कतई फिक्रमंद नहीं रहते। जाहिर है कि सरकार को इसके लिए व्यापक जन जागरूकता एवं प्रोत्साहन अभियान चलाना होगा। स्कूली शिक्षा ऐसे अभियान में निर्णायक भूमिका निभा सकती है, बशर्ते शिक्षक यह संकल्प दृढ़तापूर्वक धारण कर लें। फिलहाल इस सुविचार के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सराहना की जानी चाहिए। बिहार में लगातार ऐसे सुधारवादी अभियान चलाए जाने चाहिए जो इस गौरवशाली अतीत वाले राज्य की छवि पर लगे सारे कलंक मिटा दें और बिहार एक बार फिर ज्ञान, धर्म, मानवता, नारी सशक्तीकरण, कृषि, उद्यम आदि क्षेत्रों में शिखर छूकर देश का नेतृत्व करे। मुख्यमंत्री की यह सोच बिल्कुल सही है कि नशे की गिरफ्त में जकड़ा समाज प्रगति नहीं कर सकता। इस दृष्टि से पूर्ण शराबबंदी को एतिहासिक कदम माना जा सकता है। तमाम विवाद के बावजूद इस फैसले ने बिहार की छवि को सकारात्मकता प्रदान की है। मुख्यमंत्री द्वारा नशामुक्त बिहार का आह्वान किए जाने का प्रभाव शराबबंदी मुहिम पर भी पड़ेगा। इससे उन तत्वों का मनोबल टूटेगा जो पिछले कुछ समय से यह दुष्प्रचार कर रहे हैं कि किसी वजह से सरकार शराबबंदी के मुद्दे पर बैकफुट पर जा रही है। वैसे मुख्यमंत्री खुद इसका कड़ाई से प्रतिवाद कर चुके हैं। बहरहाल, नशामुक्त बिहार का आह्वान करके उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वह फिलहाल फ्रंटफुट पर ही रहेंगे, बैकफुट पर नहीं।

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