केंद्र सरकार द्वारा काला धन समाप्त करने की दिशा में बड़े नोट बंद करने का फैसला असरकारक तो होगा लेकिन सरकार को अन्य बिंदुओं और चुनौतियों पर भी ध्यान देना होगा, तभी सफलता मिलेगी।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के 500 और 1000 रुपए के नोट अचानक बंद करने के फैसले का बाजार, सामान्य कारोबार और आमजन पर बेशक असर पड़ा है। इससे भी अधिक प्रभावित राजनीतिक दल हुए बताए जाते हैं, जिनका चुनाव अभियान अधिक से अधिक काले धन पर निर्भर होता गया था। एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने उचित ही कहा है कि अगले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सरकार का ये फैसला ऐसे दलों के लिए आपदा से कम नहीं है। तो कुल मिला कर इस निर्णय ने आर्थिक एवं राजनीतिक गतिविधियों पर गहरा और संभवत: दूरगामी असर छोड़ा है। मगर इसके साथ ये प्रश्न भी उठा है कि क्या अब देश में काले धन का चलन पूरी तरह रुक जाएगा? अथवा क्या अब काले धंधे नहीं होंगे? वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि जो लोग ढाई लाख रुपए से अधिक के पुराने नोट बैंकों में जमा कराने जाएंगे, उनसे इसकी आय का स्रोत पूछा जाएगा। जो नहीं बता पाएंगे, वे टैक्स और जुर्माना दोनों के भागीदार होंगे। जेटली ने कहा कि सरकार धीरे-धीरे देश को नकद-हीन (कैशलेस) अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाना चाहती है। इस मकसद से कोई असहमत नहीं होगा। लेकिन यह तभी संभव है, जब ताजा कदम के प्रभाव पर उठे प्रश्नों पर गौर करते हुए सरकार उनके कारगर समाधान पेश करे। मसलन, यह ध्यान दिलाया गया है कि मोरारजी देसाई के शासनकाल (1978) में भी काला धन नियंत्रित करने के लिए 10000, 5000 और 1000 रुपए के नोट बंद किए गए थे। परंतु उसके बाद भी ये बुराई बढ़ती ही गई। विपक्ष ने पूछा है कि अगर बड़े नोट काला धन का कारण हैं, तो फिर सरकार 500 और 2000 रुपए के नए नोट क्यों ला रही है? कुछ अर्थशास्त्रियों ने ध्यान दिलाया है कि नकदी में कारोबार करने की मजबूरी अब छोटे उद्यमियों, दुकानदारों, रेहड़ी-पट्टी वालों आदि के साथ ही है। हजारों करोड़ रुपयों में खेलने वाले लोगों ने अपना अवैध धन सोना, जायदाद आदि अथवा विदेशी बैंकों में निवेश कर रखा है। इसलिए कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि ताजा कदम काले धन को समाप्त करने की समग्र योजना का एक बिंदु हो सकता है। जब तक हर छोटे-बड़े काम अथवा मंजूरी के लिए घूस देने की विवशता रहेगी, व्यापारी अपनी कमाई का एक हिस्सा बिना खाता-बही के नकद में रखने को मजबूर बने रहेंगे।
एक महत्वपूर्ण बिंदु टैक्स से जुड़ा भी है। टैक्स दरें नीचे लाने की आवश्यकता है, ताकि कर चोरी अनाकर्षक हो जाए। प्रत्यक्ष एवं परोक्ष करों को मिलाकर भारत में ये दरें आज भी खासी ऊंची हैं। इन स्थितियों के बावजूद हकीकत यह है कि इस कदम को आमजन का समर्थन मिला है। अपनी परेशानियों के बीच भी वे यही कहते सुने गए हैं कि सरकार का मकसद अच्छा है। यह स्थिति बनी रहे, इसके लिए आवश्यक है कि सरकार घोषित उद्देश्य की तरफ सचमुच बढ़ती दिखे।