पूरी दुनिया में भारत के बढ़ते कारोबार ने युवाओं के लिए नौकरी के द्वार खोल दिए हैं। दुनिया कि दिग्गज कंपनियां भारत में अपने कारखाने लगा रही हैं और भारतीय सामानों का दबदबा पूरी दुनिया में है। ऐसे में कंपनियों को ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती है जो अंग्रेजी के अलावा कोई और भाषा जानते हैं।
विदेशी भाषा सीखने वाले युवाओं की संख्या भारत में धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। जर्मन, स्पैनिश, कोरियन, चाइनीज, जैपनीज, फ्रेंच, पर्शियन और डच लैंग्वेज दुनिया में काफी बोली जाती हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से कोरियन, चाइनीज और जैपनीज भाषा सीखने वालों की संख्या बढ़ी है।
कोरिया, चीन और जापान से भारत का व्यापारिक रिश्ता काफी मजबूत रहा है। भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स के ज्यादातर उत्पाद इन्हीं देशों से आयात होते हैं। इसलिए जिन्हें इस भाषा पर अच्छी पकड़ होती है, उनकी डिमांड काफी रहती है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ इन्हीं भाषाओं में नौकरी के मौके मिलते हैं। यूरोप के ज्यादातर देशों में स्पैनिश और फ्रेंच बोली जाती है। जर्मन बोलने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है। टूरिज्म क्षेत्र में भविष्य देखने वाले छात्रों के लिए यह भाषाएं सबसे अच्छा विकल्प रहेगा।
भारत में कई बड़ी यूनिवर्सिटीज विदेशी भाषा में ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डिप्लोमा कोर्स ऑफर कर रही हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से लेकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय कई भाषाओं में डिग्री देता है। इसके अलावा कई इंस्टीस्यूट्स हैं जो डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्सेस करवाते हैं।
यह कोर्स करने के बाद नौकरी के कई विकल्प खुल जाते हैं। टूरिज्म से लेकर दूतावासों में भाषा की समझ रखने वाले लोगों की जरूरत होती है। आप पब्लिक रिलेशन, मल्टीनेशनल कंपनी, सामाजिक कार्य कर रहे संगठनों में काम कर सकते हैं। कंटेंट और ट्रांसलेशन में भी नौकरी के कई अवसर हैं।]
इस क्षेत्र में पैसे भी अच्छे मिलते हैं। मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहे लोग 30-50 हजार तक महीने में कमा लेते हैं। वहीं यह भाषा सिखा रहे शिक्षकों को भी अच्छी सैलरी मिलती है। कंपनी में जो लोग ट्रांसलेटर का काम करते हैं वह घंटों के हिसाब से भी पैसे लेते हैं। एक घंटे के 4-5 हजार लिए जाते हैं।
विदेशी भाषा सीख कर इसे करियर ऑप्शन बनाना आज के समय में एक अच्छा विकल्प है।