महंगाई के इस दौर में हरियाणा सरकार मिड-डे-मील योजना में प्राथमिक विद्यालयों में प्रति छात्र महज 3 रुपए 86 पैसे में भोजन परोस रही है. इतना ही नहीं, इस रकम में वह छात्रों को रोजाना अलग-अलग तरह के व्यंजन भी परोस रही है.
सोनीपत के मौलिक अधिकारी संतोष हुड्डा का कहना है कि प्राथमिक विद्यालय के लिए 3 रुपए 86 पैसे का बजट प्रति बच्चे के हिसाब से दिया जाता है. इस बजट में प्रति वर्ष साढ़े सात प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है. इस बजट में 10 प्रकार के मेन्यू शामिल हैं. अलग-अलग दिन को बच्चों को अलग-अलग प्रकार का खाना परोसना अनिवार्य है. उन्होंने कहा कि खाने में गुणवत्ता का होना जरूरी है. इसे लेकर वे समय-समय पर स्कूलों में जाकर मिड डे मील की चेकिंग करते रहते हैं.
इतनी राशि में गुजारा कर पाना मुश्किल
जिला शिक्षा मौलिक अधिकारी प्रति बच्चे के लिए 3 रुपए 86 पैसे देने की बात कर रही हो, लेकिन अधिकतर स्कूलों को 3 रुपए 77 पैसे ही प्रति बच्चे की दर से मिड डे मील के लिए दिए जा रहे हैं. एचयू स्थित प्राथमिक पाठशाला की मुख्याध्यापिका ने साफ तौर पर कहा कि इस पैसे में गुजारा कर पाना मुश्किल है. सकार की तरफ से जो ये राशि दी जा रही है, उसी में ईंधन का खर्च भी शामिल है.
मिड डे मील के मेन्यू में हलवा भी शामिल
मिड डे मील में दिए जाने वाले खाने में रिफाइंड का हलवा देने की भी बात है. इसमें 8 ग्राम घी में हलवा देने और 5 ग्राम घी में पौष्टिक खिचड़ी भी देना शामिल है. लेकिन सरकार द्वारा जारी राशि में यह बना पाना संभव नहीं है. ऐसे में प्रदेश के अधिकतर स्कूलों में इसे मेन्यू में नहीं रखते.
दलिये में मिलाना पड़ता है पानी
अध्यापक खुले मन से स्वीकार करते हैंं कि इस राशि में अच्छी क्वालिटी का खाना नहीं बन पाता. एक बच्चे के दलिए के लिए 60 ग्राम दूध दिया जाता है, लेकिन 60 ग्राम दूध में दलिया नहीं बन पाता है. ऐसे में मजबूरी में उन्हें दलिये में पानी मिलाना पड़ता है.
रसोई का सारा सामान तो है लेकिन रसोईघर नहीं
अध्यापकों की मानें तो सरकार गैस सिलेंडर रखने की बात करती है लेकिन रसोई न होने के कारण वो सिलेंडर रखेंं कहां पर. प्रदेश में कई स्कूल ऐसे हैं जहां रसोईघर नहीं है तो वहां या तो खुले में या कक्षाओं में ही खाना बनाया जाता है. इससे बच्चों को पढ़ाई में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. यहीं नहीं, सरकार की तरफ से बर्तन धोने के लिए वाशिंग पाउडर भी नहीं दिया जाता है. इसलिए उन्हें बजट में दिए गए 3 रुपए 77 पैसे में ही इसे भी एडजस्ट करना पड़ता है.
बच्चे अपने घर भी ले जाते हैं खाना
स्कूलों में आने वाले अधिकतर बच्चे लेबर तबके और गरीब परिवार के हैं. इनमें से अधिकतर खाने के लालच में ही स्कूल में आते हैं. अधिकतर बच्चे तो टिफिन लेकर स्कूल में आते हैं. ये अपना खाना खाते हैं और टिफिन में अपने भाई-बहन के लिए खाना लेकर जाते हैं. अगर टीचर टिफिन में खाना देने से इनकार करें तो ये बच्चे स्कूल आना छोड़ देते हैं. ऐसे में बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए टीचर्स को टिफिन में खाना देना पड़ता है. दूसरी तरफ बच्चों की बात की जाए तो बच्चें स्कूलों में मिलने वाले खाने से काफी खुश हैं. रोजाना अलग-अलग प्रकार के व्यंजन मिलने से बच्चों की खुशी देखते ही बनती है.
जुगाड़ विधि से भरा जा रहा बच्चों का पेट
इसमें कोई दो राय नहीं कि मिड डे मील के जरिए कुपोषण को दूर करने की सरकार की स्कीम केवल गरीब के बच्चों का दिल बहलाने वाली भर है. महज 3 रुपए 86 पैसे में कैसा खाना बनता है, ये सब जानते हैं. स्कूल इंचार्ज भी सरकार की हां में हां भरने को मजबूर हैं. जैसे-तैसे जुगाड़ विधि से इंचार्ज बच्चों का पेट भरने में कामयाब हो रहे हैं लेकिन उन्हें पौष्टिक खाना देने की बात हकीकत से कोसों दूर है.