पियूष मणि अवस्थी!
उत्तर प्रदेश के चुनाव नजदीक आ रहे हैं सभी पार्टियों की निगाहें उत्तर प्रदेश पर लगी है कोई परिवर्तन की बात करके जनता को लुभाने की कोशिश कर रहा है तो कोई ‘कहो दिल से हम फिर से’, ‘इतने साल यूपी बेहाल’ सुन-सुन कर तंग आ चुकी जनता के पास आखिर क्या विकल्प है? मेरा मकशद हकीकत से परिचय कराना है जब उत्तर प्रदेश की जनता मूर्ती वाली सरकार से तंग हुई तो उसके बाद समाजवादी पार्टी को प्रदेश में लाना ही एक विकल्प था| समाजवादी पार्टी ने अखिलेश के न्रेतत्व में युवाओ को आगे आने का एक मौका दिया, नतीजा आपके सामने है कि पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और बहुजन समाज पार्टी को मुंह की खानी पड़ी| जैसे ही सपा ने ये फैसला किया की मुख्यमंत्री की गद्दी पर अखिलेश बैठेंगे, मानो कुछ लोगो को सांप सूंघ गया और विरोध होने लगा मगर वो विरोध किसी काम नहीं आया| सपा सुप्रीमो ने अपने पुत्र मोह में पुत्र अखिलेश को मुख्यमंत्री का ताज पहना कर कहा की चलाओ प्रदेश राजनीती के पन्नो को, पूरी तरह पढ़कर बेठे अखिलेश ने आते ही कुछ कथा कथित लोगो को चलता किया जिससे कुछ बड़े नेताओ को रास नहीं आया मगर करता न तो करता क्या? अखिलेश ने उत्तर प्रदेश को एक नई दिशा दी ओर प्रदेश में विकाश की लहर दौड़ गयी| ये बात भी कुछ लोगो को रास नहीं आई और नतीजा ये हुआ कि सपा दो खेमे में हो गई| मंच से लेकर सड़क तक नोक-झोक शुरू हो गई| लेकिन इससे क्या साबित हुआ? कुछ नहीं, मुलायम के भाई शिवपाल को प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री ने मंत्री मंडल से चलता किया जो भाई मुलायम को रास नहीं आया फिर क्या शुरू हुआ, एक दुसरे पे आरोप प्रत्यारोप का माहोल जसमे दुखी अखिलेश माइक हाँथ में लेकर रोने लगे ओर अपनी उपलब्धियां गिनाने लगे| उसी बीच चाचा शिवपाल भी अपने दर्द व समाजवादी पार्टी के लिए किये हुए संघर्षो को बताने से नहीं चुके| अब बारी थी सुप्रीमो मुलायम की कि, वो भाई शिवपाल ओर पुत्र अखिलेश दोनों को कैसे समझाए| हालांकि मुलायम को मैदान में आना ही पड़ा और बीच बचाव किया जिससे भाई शिवपाल के बचाव में कहा कि जब 2012 का चुनाव हम जीते तो शिवपाल ने मुझसे कहा था कि मुख्यमंत्री आप बनो क्योंकि लोक सभा का चुनाव होने वाला है लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया और इनको मुख्यमंत्री बनाया और शिवपाल का गुणगान करने से नहीं चुके| खुद प्रधान मंत्री बनने की तमन्ना लिए मुलायम आखिर किसपे अपना गुस्सा दिखाते आखिर कह ही दिया कि जब हम मुख्यमंत्री थे तो लोक सभा चुनाव में ठीक-ठाक सीट जीत कर लोकसभा गए थे| अखिलेश के कार्यकाल में ये हाल होगा, ये मैंने नहीं सोचा था|
क्या ये सभी की सोंची-समझी राजनीति थी| कही ऐसा तो नहीं कि प्रदेश की जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना था| ये राजनीति है कुछ भी संभव है| कोई स्लोगन के नाम पे खुद को साबित करने में लगा है तो कोई खुद को बाहुबली मान के दम भर रहा है क्योकि जितने बाहुबलियों को अखिलेश ने बाहर का रास्ता दिखाया शिवपाल ने अपने पद के दम पे सभी की वापसी कर ली अब क्या होगा यह एक चिंता का विषय है|
एक नज़र यूपी के विकास पर-
में अपने दावे के साथ एक बात तो कह सकता हूँ की यदि किसी ओवर ब्रिज को बनने में कम से कम २ से ३ साल लग जाया करते थे वहीं अखिलेश खुद को साबित कर एक बात तो साफ कर दी कि लगन से किया गया काम सफल होता है शायद यही वजह सभी पार्टियों को रास नहीं आई| एक समय था जब लखनऊ में लहराती गोमती शायद अपने दबे ओंठो से कह रही थी की ए भाई जरा मुझे भी देख लो, किसी नेता की निगाह गोमती पे नहीं पड़ी अखिलेश की विकास योजना में जब गोमती को भी शामिल किया गया तो लखनऊ वासियों के मन में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी गोमती मानों झूम सी उठी हो| लन्दन की थेम्स नदी को मानो लखनऊ की सर जमी पे उतार दिया हो| मेट्रो का सपना लखनऊ वासियों को एक तोहफे के तौर में मिली अब लखनऊ की शाम और सुहानी हो गई पुरे प्रदेश में विकास की लहर दौड़ गई प्रदेश के हर गांव सहर को कई सौगाते दे डाली, लेकिन शायद ये सब कुछ करने के बाद भी उनके काम व नाम पर उंगलिया उठने लगी| रिटायर्मेंट की कगार पर पहुँच चुके नेताओ को ये लगने लगा की अब हमारा क्या होगा?
पुलिस प्रशासन को भी मजबूत किया-
पुलिस विभाग की दिक्कतों को भी कही हद तक दूर किया और मजबूत किया अगर हम बात करे अपराधियों की तो अपराधी की गाड़ी पुलिस की गाड़ी से हमेशा तेज़ भागती थी और अपराधी पुलिस की पकड़ से दूर निकल जाते थे इसको देखते हुए युवा मुख्यमंत्री ने सभी थानों को तेज़ भागने वाली गाड़ियां मुहैया करा दी| अब अपराधी तेज़ नहीं भाग सकता 100 नम्बर तो पहले से था मगर उसको भी मजबूत किया महिलाओ की सुरक्षा के लिए १०९० की योजना बनाई और सफल भी हुई| एसे ही कई कारनामे इतिहास के तौर पे याद किये जायेंगे|
जब दो खेमे में बट गई सपा:
जब सडको पे अखिलेश जिंदाबाद के नारे लग रहे थे तब तब मानो विकास के नारे गूंज रहे थे और वंही पे दूसरी ओर शिवपाल जिंदाबाद के नाम के भी नारे गूंज रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि समाजवाद के नारे गूंज रहे हों|
मैं तो यही कहूँगा की
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
ये गांठ अब शायद कभी न जुड़ने वाली गांठ होगी|