23 साल बाद जेल से पिता की आजादी की खबर ने बेटे को इतनी अधिक खुशी दी जिसे वह संभाल न सका और अचानक से आए दिल के दौरे ने उसकी जान ले ली।
कोल्हापुर। चार वर्ष की उम्र में ही पिता को उम्र कैद की सजा दी गयी थी। पूरे 23 साल तक कैद में रहने के बाद आजाद पिता से मिलने की उतेजना ने पुत्र की जान ही ले ली।
वर्ष 1996 में महज चार साल के साजिद मकवाना के पिता हसन को बांबे हाईकोर्ट ने उम्र कैद की सजा दी थी जिसके बाद हसन ने कभी पैरोल के लिए भी अप्लाई नहीं किया। इसलिए मंगलवार को जब कालांबा सेंट्रल जेल से रिहाई की तिथि निश्चित की गयी तब बेटे साजिद की खुशी का ठिकाना न रहा। लेकिन पिता से मिलने की यह खुशी उसके लिए जानलेवा साबित हुई और जेल के बाहर ही अचानक आए दिल के दौरे की वजह से उसकी मौत हो गयी।
जेल अधीक्षक शरद शेल्के ने बताया कि दोपहर को 65 वर्षीय हसन को रिहा किया जाएगा। उसने सैल्यूट किया और सड़क के दूसरी ओर कार में अपने परिवार के सदस्यों से मिलने चला गया। साजिद अपने पिता से मिलने को लेकर इतना अधिक खुश था कि अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर सका और उसे हार्ट अटैक आ गया। इसके बाद परिजन उसे नजदीकी अस्पताल ले गए जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। मुंबई के अंधेरी में साजिद मोटर ड्राइविंग स्कूल चलाता था। जेल से पिता की रिहाई के बाद उसने शादी करने की योजना बनायी थी। 1977 में एक झगड़े में हसन के हाथों एक शख्स घायल हो गया और बाद में उसकी मौत हो गयी थी जिसके बाद उसे यह सजा दी गयी थी।
1981 में बांबे हाई कोर्ट में हसन ने अपील किया और उसे जमानत मिली थी। हालांकि 1996 में हाई कोर्ट ने उसे उम्र कैद की सजा दी और पुणे के यरवदा जेल भेज दिया। वहां से 2015 के नवंबर में उसे कालांबा जेल भेजा गया। शेल्के ने बताया, ‘1996 के बाद हसन ने पैरोल के लिए कभी अप्लाई नहीं किया और परिजनों से टेलीफोन पर बातचीत किया करता था। पिछले सप्ताह हमें राज्य सरकार से एक पत्र मिला जिसमें 17 जनवरी को उसकी रिहाई के बारे में सूचित किया गया।‘