ज़न्नत में आफत

कश्मीर घाटी में अशांति का खमियाजा सबसे ज्यादा वहां के स्कूली बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से चल रही अशांति की वजह से वहां के स्कूल बंद हैं। इस बीच दहशतगर्दों ने बीस से ज्यादा स्कूल जला डाले। हुर्रियत नेताओं ने इस बात से अनभिज्ञता जाहिर की है कि स्कूल जलाने के पीछे किसका हाथ है। पिछले दिनों जब बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होने को लेकर चिंता जताई गई तो जम्मू-कश्मीर सरकार ने कहा था कि बच्चों की परीक्षा श्रीनगर के एक स्टेडियम में कराई जाएगी। मगर यह संकल्प अधूरा साबित हुआ। पहले भी कई बार जब घाटी में असामान्य हालात बने, स्कूलों को आग के हवाले करने की घटनाएं हुर्इं। पर इस बार जितने बड़े पैमाने पर स्कूल जलाए गए, वह अपूर्व है। इन्हें सिर्फ इसलिए नहीं जलाया गया कि ऐसा करना आसान था

और इस तरह अलगाववादियों का मकसद सधता था। यह विरोध की प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि उन लोगों की सोची-समझी कार्रवाई है जिन्हें स्कूलों से परेशानी होती है। कट्टरपंथी इस्लामी ताकतें पश्चिमी शिक्षा का विरोध करती रही हैं, मगर घाटी में स्कूल जलाने के पीछे यही वजह नहीं मानी जा सकती। जलाए गए ज्यादातर स्कूल सरकारी हैं। जाहिर है, उपद्रवियों ने इस तरह सरकार को निशाना बनाया है। केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने इस पर चिंता जताते हुए कहा है कि घाटी के लोगों को समझना चाहिए कि ऐसी हरकतों से किसका नुकसान होता है। हालांकि स्कूलों को आग के हवाले करने की घटनाओं के विरोध में घाटी के आम नागरिकों ने सड़कों पर प्रदर्शन किया, मगर उन्हें देख कर साफ जाहिर था कि वे भी खौफजदा हैं।

इन घटनाओं के बीच यह भी तथ्य उजागर हुआ कि रसूख वाले लोगों ने अपने बच्चों का दाखिला घाटी से बाहर के स्कूलों में करा दिया। फिर ऐसे स्कूल खुलते रहे, जिनमें कुछ हुर्रियत नेताओं के परिवार के बच्चे पढ़ रहे थे। समाज में पढ़ाई-लिखाई के माहौल से उन्हीं लोगों को परेशानी होती है, जो तरक्की-पसंद नहीं होते और जिनकी मंशा युवाओं को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की होती है। घाटी की अलगाववादी ताकतें भी चाहती हैं कि वहां के बच्चे अनपढ़ रहें और उनके उकसाने पर पत्थरबाजी में शरीक हो सकें। जब तक घाटी के लोग इस साजिश के खिलाफ लामबंद नहीं होंगे, अलगाववादी अपने मकसद में कामयाब होते रहेंगे। करीब चार महीने से घाटी अशांत है।

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