12 वीं पास चाचा, ग्रेजुएट भतीजे का सालाना 5 करोड़ टर्न ओवर

रायपुर। देवपुरी में नकली ऑइल फैक्टरी चलाने के मामले में पुलिस के फंदे में फंसे चाचा-भतीजे वैसे पढ़े-लिखे तो कम हैं, लेकिन उनका दिमाग किसी अफसर से कम नहीं है। चाचा निहित गुरवानी 12 वीं पास है और भतीजा मोहित गुरवानी ने बी.काम तक की पढ़ाई की है। महज तीन साल के भीतर नकली ऑइल के खेल में दोनों ने तगड़ा नेटवर्क तैयार कर लिया था।

उनकी मंशा थी कि फैक्टरी से तैयार होकर निकलने वाला नकली ऑइल बाजार में इस तरह छा जाए कि दुकानदार और गैराज मालिक ब्रॉडेड कंपनियों के महंगे ऑइल के खरीदने के बजाय तीन गुना कमीशन के लालच में उनका माल ही खरीदें। इसके लिए उन्होंने बाकायदा एजेंट भी रखे थे।

एजेंट शहरों के अलावा आसपास के छोटे जिलों में दुकानदारों से लगातार संपर्क कर आधी कीमत पर असली इंजन ऑइल उपलब्ध कराने का दावा करते थे। फैक्टरी संचालक चाचा-भतीजे के टारगेट में प्रदेश के छोटे जिले थे, जहां पर वे आसानी से नकली ऑइल खपा सकते थे।

दरअसल यह चौंकाने वाला खुलासा फैक्टरी से जब्त किए गए दस्तावेज, बिल बुक, लेजर, रजिस्टर आदि से हुआ है। पुलिस ने बिल बुक को खंगाला तो पता चला कि राजधानी के करीब दो दर्जन दुकान, गैराजों में लाखों के नकली ऑइल की सप्लाई हर माह की जाती थी। यही नहीं, आसपास के जिलों में सप्लाई भारी मात्रा में नकली ऑइल खपाया जा रहा था।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक हर महीने 30 से 40 लाख रुपए का नकली ऑइल राजधानी समेत आसपास के जिलों में खपाने का अनुमान है। इस तरह फैक्टरी का सालान टर्न ओवर 5 करोड़ रुपए अनुमानित है। जांच में आगे और भी खुलासे होंगे। हालांकि निहित गुरवानी ने इससे इंकार किया है। उसका कहना है कि उसने अभी यह कारोबार शुरू ही किया था। उसकी बातों पर विश्वास करें तो वह इस कारोबार से बड़ी मुश्किल से फैक्टरी का खर्च निकाल पाता था। पुलिस ने छापे में फैक्टरी से 7 हजार लीटर नकली इंजन ऑइल बरामद किया है।

18 हजार मासिक किराए लिया गोदाम

देवपुरी में मेन रोड से लगे जिस गोदामनुमा दो कमरों में नकली ऑइल फैक्टरी संचालित हो रही थी, दरअसल वह लाखेनगर के चंदरलाल की है। तीन साल पहले निहित गुरवानी को चंदरलाल ने 18 हजार रुपए मासिक किराए पर दोनों कमरे दिए थे। निहित ने आनंद लूब्स नाम से यहां फैक्टरी डाली और सिमरन ल्यूब्रकैन्ट्स नाम से जिला व्यापार केंद्र में बाकायदा पंजीयन भी कराया है।

अपने ट्रेडमार्क पर नामचीन कंपनियों का रैपर

चाचा-भतीजे ने ली फोर्ड, कैपिटल, क्लासिक, रि-लॉन आदि नाम से इंजन व ग्रीस ऑइल बनाने का ट्रेडमार्क भी ले रखा है। शुरुआत में जब उनका हल्का इंजन ऑइल बाजार में बहुत कम बिकने लगा तो उन्हे यह डर सताने लगा कि कहीं फैक्टरी बंद न हो जाए। करीब 20 से 30 लाख रुपए का इंवेस्ट करने के बाद भी कारोबार में नुकसान होते देखकर आखिर में दोनों ने अपने ब्रॉड की आड़ में नामचीन ऑइल कंपनियों कैस्ट्रोल एक्टीव, सर्वो, एचपी, हीरो आदि का रेपर लगाकर आधे कीमत पर ऑइल सप्लाई करने लगे तब कुछ महीने के भीतर ही उनका कारोबार लाखों में होने लग गया।

चाचा-भतीजे को जेल

नईदुनिया की पुख्ता सूचना पर टिकरापारा पुलिस ने शुक्रवार को देवपुरी के नकली ऑइल फैक्टरी में दबिश देकर मौके से संचालक निहित गुरवानी और मोहित गुरवानी को गिरफ्तार किया था। चाचा-भतीजे के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471, 34 और 63 कापी राइट एक्ट के तहत अपराध कायम कर शनिवार दोपहर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।

ऐसे करें असली-नकली ऑइल की पहचान

कैस्ट्रोल कंपनी दिल्ली के अधिकृत अधिकारी अनिल मल्होत्रा ने बताया कि कैस्ट्रोल कंपनी के एक्टीव इंजन ऑइल के 9 सौ एमएल या 1 लीटर के डिब्बे के ढक्कन पर बैच नंबर एवं सीरियल नंबर अंकित होना ही इसके असली होने का प्रमाण है। दोनों नंबर स्पष्ट रूप से पढ़े जा सकते हैं, यही नहीं, उसी डिब्बे में पीछे वाले लेबल पर नीचे की तरफ भी ये दोनों नंबर स्पष्ट अंकित होते हैं। ढक्कन और सील पट्टी के बीच में कैस्ट्रोल लिखा होना भी असली इंजन ऑइल को प्रमाणित करता है। इसका नकल किसी भी तरीके से नहीं किया जा सकता है। फैक्टरी से जब्त किए गए नकली ऑइल के डिब्बों के ढक्कन पर और पीछे वाले लेबल में अलग-अलग बैच नंबर और सीरियल नंबर हैं, जो यह दर्शाते हैं कि यह नकली ऑइल है।

न लें लूज ऑइल, खराब हो जाएगा इंजन

इंजन ऑइल विक्रेताओं के अनुसार नकली ऑइल दोपहिया वाहनों में इस्तेमाल करने से अगर वाहन के इंजन की लाइफ दस साल है तो वह दो से तीन साल में ही खराब हो जाएगी। बाजार में कई तरह के लूज ऑइल पाउच और डिब्बों में सस्ते दामों पर बेचे जाते हैं। इन डिब्बों में कंपनी का बैच नंबर और सीरियल नंबर अंकित नहीं होता। जिन डिब्बों में यह अंकित भी होता भी है तो नंबर अलग-अलग होते हैं। राजधानी समेत पूरे प्रदेश में नागपुर से भारी मात्रा में रिफाइन और लूज इंजन ऑइल कई कारोबारी मंगाकर उसे बाजार में खपाते हैं। कुछ कारोबारी गाड़ियों के जले हुए ऑइल को खरीदकर उसे केमिकल से रिफाइन कर दोबारा गैराज, दुकान व बाजार में या फैक्टरियों में बेच देते हैं।

रहें सावधान…

अगर आप अपने वाहन में नामचीन कंपनियों के इंजन ऑइल डलवाते हैं तो डिब्बे वहां पर न छोड़ें, क्योकि खाली डिब्बों में इस्तेमाल नकली ऑइल का गोरखधंधा करने वाले उसमें नकली ऑइल भरकर नकली रैपर, बैच नंबर अंकित करके बाजार में बेच देते हैं।

बिकते हैं खाली डिब्बे

राजधानी के कुछ दुकानदारों ने भी नाम न छापने की शर्त पर स्वीकार किया कि नामी कंपनी के खाली डिब्बे उनके यहां से खरीदकर ले जाया जाता है। बाद में उन डिब्बों की अच्छे से सफाई कर उसमें नकली ऑइल पैक कर दिया जाता है। इसके बाद एजेंटों के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों के ऑटोपार्ट्‌स दुकान, गैराज में 300 रुपए का इंजन ऑइल 120 रुपए में बेच दिया जाता है। यही नहीं, कोलकाता की फैक्टरी से तैयार खाली डिब्बे को यहां मंगवाया जाता है। कुछ लोकल प्लास्टिक फैक्टरी में भी ऐसे डिब्बे बनाए जा रहे हैं।

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