कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के एक साथ इलाहाबाद पहुंचने पर यहां की राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं. इस बात की चर्चाएं भी होने लगी हैं कि बारह साल बाद परिवार के तीनों महत्वपूर्ण सदस्य एक साथ क्यों पहुंचे हैं. हालांकि, प्रत्यक्ष रूप से सोनिया गांधी यहां स्वराज भवन में लगाई गई इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करने आई हैं.
आमतौर पर सोनिया गांधी यहां पहले भी कमला नेहरू ट्रस्ट के कामकाज को देखने के लिए आती रही हैं. लेकिन 2004 के बाद यह पहला मौका है जब सोनिया, राहुल और प्रियंका एक साथ यहां पहुंचे हैं. वह भी तब जब आगामी विधानसभा चुनाव में प्रियंका की यूपी के चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाए जाने को लेकर चर्चाएं हैं.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर ने कुछ दिन पहले यह बयान भी दिया था कि प्रियंका ने प्रदेशभर में प्रचार की सहमती दे दी है और जल्द ही कार्यक्रम घोषित किया जाएगा. अब जबकि चुनाव सिर पर हैं और सोनिया, राहुल और प्रियंका इलाहाबाद में एक साथ हैं, ऐसे में यह कयास लगने लगे हैं कि कांग्रेस इस बार अपनी जड़ों की तरफ लौट कर अपने पैतृक आवास को यूपी विधानसभा का वार रूम बनाएगी.
इतना ही नहीं कांग्रेस के कई धुरंधर नेता जैसे राजीव शुक्ला, राज बब्बर, शीला दीक्षित, गुलाम नबी आजाद आदि भी सोनिया, राहुल और प्रियंका के साथ इलाहाबाद में ही मौजूद हैं. सभी सोनिया के इस प्रवास के दौरान साथ-साथ हैं.
राजनीतिक जानकार इसे महज इत्तेफाक नहीं मान रहे हैं. उनका कहना है कि कांग्रेस के ये सभी धुरंधर यूं ही एक साथ उस आनंद भवन में नहीं पहुंचे हैं. कांग्रेस के सुनहरे दिनों में यही आनंद भवन नेहरू का वार रूम हुआ करता था. यही इंदिरा गांधी की जन्मस्थली भी है.
कांग्रेस के स्थानीय सूत्रों की मानें तो यहां प्रियंका गांधी को लेकर रणनीति बनाने के लिए ही परिवार के तीनों महत्वपूर्ण सदस्यों समेत कांग्रेसी धुरंधर जुटे हैं. कुछ लोग इसे टोटके के तौर पर भी देख रहे हैं.
दरअसल, पंडित जवाहर लाल नेहरू इसी इलाहाबाद की फूलपुर लोकसभा सीट से 1952 में पहली बार सांसद बने और देश के पहले प्रधानमंत्री. 1952 के बाद लगातार 1962 तक पंडित नेहरू यहां से सांसद चुने जाते रहे. उन दिनों विधानसभा सीटों पर भी कांग्रेस का कब्जा रहा. 1964 और 1967 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित फूलपुर से सांसद रहीं, लेकिन इसके बाद नेहरू-गांधी परिवार का राजनीतिक नाता यहां से खत्म हो गया. 1952 में ही इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी रायबरेली से सांसद बने थे. 1967 में इंदिरा गांधी ने अपने पिता की विरासत को छोड़कर पति की सीट पर रायबरेली से चुनाव लड़ा और वहीं की होकर रह गईं. 1980 में संजय गांधी ने भी इलाहाबाद की जगह रायबरेली से मिली हुई अमेठी सीट से चुनाव लड़ा और बाद में यह सीट राजीव गांधी और फिर अब राहुल गांधी के पास है.
उधर, इंदिरा के बाद सोनिया ने भी इलाहाबाद का रुख नहीं किया और रायबरेली की विरासत सम्भाल ली. इस तरह 1967
के बाद से नेहरू-गांधी परिवार का नाता सिर्फ आनंद भवन तक रह गया. इलाहाबाद समेत पूरे पूर्वांचल से कांग्रेस का जनाधार टूटने लगा और यहां लोकसभा समेत विधानसभा की सीटें सरकने लगीं. अब जबकि पूर्वांचल की सीटें सभी दलों के लिए महत्वपूर्ण हो चली हैं, ऐसे समय में सोनिया का सपरिवार यहां होना अपनी खोई जमीन पाने का टोटका ही नजर आता है.
यहां के कुछ पुराने कांग्रेसियों की मानें तो अमेठी और रायबरेली तक सिमटा गांधी परिवार एक बार फिर अपनी जड़ों की तरफ लौटने का प्रयास कर रहा है. सोनिया और राहुल के साथ प्रियंका का ऐसे मौके पर यहां मौजूद होना इस बात का प्रबल संकेत भी है कि वतन की मिट्टी दोबारा खींच कर परिवार को यहां लाई है. लिहाजा यहां हुए मंथन के बाद अगर कोई बड़ा ऐलान कांग्रेस करती है तो इसका असर पूरे पूर्वांचल पर पड़ेगा.
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