आज 18 नवम्बर है यानि सरोवर नगरी का बर्थडे! नैनीताल का नाम सुनते ही मन में सर्द हवाएं और ताजी आबोहवा लोगों के जहन में घर कर जाती है. यही कारण है की अंग्रेजों ने इस शहर को खोजने के बाद अपनी ग्रीष्म कालीन राजधानी के लिये चुना. पर कम ही लोगों को पता है कि नैनीताल का इतिहास भी काफी रोचक रहा है. आज नैनीताल अपनी बसासत के 175 साल पूरे कर 176वें साल में प्रवेश कर रहा है. इस दौरान सरोवर नगरी ने काफी उतार चढावों का दौर देखा पर इसकी कुदरती खुबसूरती में आज भी कोई फर्क नहीं पड़ा है.
1823 में ट्रेल यहां आये थे, लेकिन ट्रेल ने इसकी जानकारी किसी को नहीं दी ताकि इसकी खूबसूरती को ग्रहण नहीं लगे. जिसके बाद आज ही के दिन साल 1841 में अंग्रेज व्यवपारी पीटर बैरन ने इस खूबसूरत शहर की खोज की थी. कहा जाता है की जब पीटर बैरन यहां पहुंचे तो नर सिंह थोकदार के पास नैनीताल का पूरा स्वामित्व था.
अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन ने नर सिंह थोकदार को डरा धमका कर इस शहर को अपने नाम कर लिया. 1842 से शुरू हुई यहां बसासत के बाद अंग्रेजों ने नैनीताल को ना सिर्फ अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाई बल्कि नैनीताल को छोटी विलायत का भी दर्जा दीया.
नैनीताल में लोगों की बसासत के बाद साल 1867 में पहला भूकम्प आया. इसमें कोई भी हताहत नहीं हुआ. इसके बाद 1880 में यहां भारी भूस्खलन हुआ, जिसमें 151 लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी. जिसके बाद अंग्रेजों ने इस शहर को सुरक्षित रखने के लिये 64 छोटे बडे नालों का निर्माण करवाया था, लेकिन वक्त के साथ ये पूरा शहर कंक्रीट के जंगल में समाने के साथ नालों पर भी लोगों ने अतिक्रमण कर लिया. इसके चलते आज शहर के अस्तित्व पर खतरा है.
इतिहासकार अजय रावत बताते है कि इस शहर को बचाने के लिये इन नालों का महत्वपूर्ण योगदान है, जिनको नैनीताल की धमनियां कहा जाता है. साथ ही अजय रावत बताते है कि शहर पहले से ही मौजूद था, लेकिन कोई यहां आता नहीं था. पहले इसी स्थान के जरिये मानसरोवर यात्रा होती थी. यहां स्नान करने से मानसरोवर में स्नान का पुण्य मिलता है.
बहरहाल आज नैनीताल 175 साल का तो हो गया, लेकिन बेतरतीब निर्माण से शहर के अस्तित्व पर खतरा मंड़रा रहा है. बेहतर यही होगा की लोग स्वंय भी जागरुक हो ताकि ये सवाल खड़ा ना हो सके कि क्या भविष्य में नैनीताल बच पायेगा या नहीं.