मुंबई। 26/11 के अटैक के बाद 100 से ज्यालदा चिट्ठियां, अभी तक नहीं मिली मददसबिरा खान और उसके परिवार के जख्म नहीं भरे। सबिरा और उसके बड़े बेटे हामिद डॉकयार्ड रोड़ पर बीपीटी कॉलोनी में एक छोटे से किराए के फ्लैट में बैठे है। उनके आसपास सालों से सरकार को लिखे पत्रों का ढेर लगा है। उस हमले में सबिरा गंभीर रूप से घायल हुई थी। डॉकयार्ड रोड पर उसके बिलकुल बगल में खड़ी टैक्सी में बम धमाका हुआ था जिससे वह 20 फीट उड़ गई थी। उसकी चोंटे इतनी गंभीर थी कि 71.8 प्रतिशत वह स्थायी रूप से अपंग हो गई थी और वह बिना बैसाखी के हिल भी नहीं सकती।
सबिरा ने कहा ‘दो महीने के लिए बिना उचित इलाज के सरकारी अस्पताल में थी क्योंकि मेरे पैर में संक्रमण फैल गया था। जब मेरा ऑपरेशन हुआ तो जो खून चढ़ाया गया, वह पीलियावाला था जिसने मेरे दर्द और समस्या को बढ़ा दिया।’
45 साल की सबिरा को अलग-अलग अस्पताल में छह ऑपरेशन से गुजरना पड़ा जिसमें जेजे सैफी, वडाला मुंबई पोर्ट ट्रस्ट हॉस्पिटल, कस्तूरबा हॉस्पिटल और सायन हॉस्पिटल था। विभिन्न चिकित्सा उपचार पर अब तक वह 12 लाख से ज्यादा खर्च कर चुकी है। उसका परिवार की शिकायत है कि इलाज के लिए उचित मुआवजा नहीं दिया गया।
हामिद ने ब ताया ‘ हमें तीन लाख रुपए मुआवजा देने का वादा किया था और पीड़ित के एक रिश्तेदार को नौकरी। आठ साल हो चुके हैं हम दोनों चीज के लिए बार-बार मांग कर रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ नहीं हो पाया।’
सबिरा के परिवार में छह बच्चे और 90 साल की बीमार मां है। उनके पति मुंबई पोर्ट ट्रेस्ट में कर्मचारी है लेकि हामिद अंधेरी में एक स्टॉल पर जींस बेचता है और महीने में 10 हजार कमाता है। छोटे बच्चे पढ़ ही रहे हैं। सबिरा के इलाज का खर्च रिश्तेदारों से उधार लेकर, उनके कपड़े बेचकर और गोवांदी में अपने घर को गिरवी रखकर पूरा किया।
परिवार का मानना है कि आतंकवाद के शिकार लोगों की कुंठा का चुनावी लाभ के लिए छेड़छाड़ की जा रही है। हामिद ने कहा ‘जब कांग्रेस सत्ता में थी तो एक बीजेपी नेता आया और मेरी मां को अन्य पीड़ितों के साथ मुआवजे की मांग करने के लिए मंत्रालय ले गए। उन्होंने यह बताया कि बीजेपी सरकार सत्ता में आएगी तो हम उनका सारा खर्चा उठाएंगे। अब वे सत्ता में है तो हम जब भी संपर्क करने की कोशिश करते हैं तो हमें कह दिया जाता है कि दिल्ली में किसी काम से गए हैं।’
हामिद ले दावा किया कि उसने 100 से ज्यादा पत्र लिखें हैं और सरकारी अधिकारियों को याचिकाएं दी है। सबिरा ने बताया ‘सभी ने हमसे वादा किया लेकिन हमें किसी तरह भी राहत नहीं दी। हमने मंत्रालय, जिला कलेक्टर, पीएम मोदी, स्वास्थय मंत्री से अपील की है लेकिन बस हमें घुमा दिया गया।’
ब्लास्ट के पहले सबिरा 20 से 25 बच्चों को अरेबिक और उर्दू सिखाती थी। यह घटना तब हुई जब वह क्लास से लौट रही थी। आज वह पढ़ा नहीं सकती है लेकिन फिर भी वह अपने घर में आने वाले 5-6 बच्चों को पढ़ा लेती है।