नाम शबाना’ के लिए बहुत रिसर्च की गई: नीरज पांडे

मुंबई  | उनकी पहली फिल्म ‘ए वेडनसडे’ में न सिर्फ एक झकझोर देने वाला संदेश था जिसने सारे देश में हलचल मचा दी थी बल्कि इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड भी मिला। सीक्रेट एजेंट्स और भारतीय सैन्य अधिकारियों पर फिल्में बनाने वाले नीरज पांडे की अपनी एक अलग ही शैली है। बेबी, रुस्तम, स्पेशल 26, नाम शबाना और एमएस धोनी जैसी सफल फिल्में के बाद आज वे इंडस्ट्री के बेहतरीन फिल्मकारों में शामिल हो गए हैं। इस साल नीरज पांडे ने अपनी फिल्म ‘नाम शबाना’ के साथ भारतीय दर्शकों को स्पिन-आॅफ का अनूठा विचार पेश किया। आगामी 13 अगस्त को रात 8 बजे एंड पिक्चर्स पर होने जा रहे ‘नाम शबाना’ के इंडिपेंडेंस वीक प्रीमियर के अवसर पर उन्होंने दिलचस्प कहानियों और सधे हुए किरदारों के प्रति अपने विश्वास के बारे में बताया। साथ ही, अक्षय कुमार के साथ अपने शानदार तालमेल के बारे में भी बात की।
– नाम शबाना बॉलीवुड की पहली स्पिन-आॅफ फिल्म है। ये स्पिन-आॅफ क्या है और इस फिल्म को बनाने का विचार कैसे आया?
स्पिन-आॅफ ऐसी फिल्म होती है जिसमें किसी ऐसे किरदार की पिछली कहानी दिखाई जाती है जो पहली फिल्म का हिस्सा होता है। इस मामले में हमारी पहली फिल्म बेबी थी। नाम शबाना को विचार तब आया जब फिल्म बेबी में तापसी के किरदार को बहुत सराहा गया था। वे कुल 10 मिनट पर्दे पर नजर आई थीं लेकिन दर्शकों के दिलों दिमाग पर छा र्गइं। फिर हमारे मन में उनकी कहानी बताने का विचार आया जिसमें हम इस किरदार की शुरुआत दिखाते हैं। हम इस तरह का कुछ अलग काम करते हुए बेहद उत्साहित थे।
– बेबी में दर्शकों ने अक्षय कुमार को प्रमुख किरदार के रूप में देखा था। तो क्या आपको उन्हें ‘नाम शबाना’ में थोड़ी देर का रोल देना जोखिम भरा नहीं लगा?
बेबी में तापसी ने हमारे साथ बस 4 दिन ही शूटिंग की थी लेकिन उनके रोल को बहुत पसंद किया गया था। इसी तरह अक्षय ने नाम शबाना के लिए हमारे साथ 8-10 दिन शूटिंग की लेकिन उनका काम भी निखर कर सामने आया। तो शूटिंग के दिन या रोल की लंबाई मायने नहीं रखती बल्कि यह देखा जाता है कि आप क्या कहना चाहते हैं और आप इसे लेकर उत्साहित हैं या नहीं। आप कुछ मिनटों में भी अपनी बात कह सकते हैं। यह जरूरी नहीं कि आपका महत्व तभी समझा जाएगा जब आप पर्दे पर ढाई घंटे नजर आएं। आप दो मिनट में भी अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं।
– आपकी फिल्में ए वेडनसडे, स्पेशल 26, बेबी और नाम शबाना एक जासूस या अंडर कवर एजेंट की जिंदगी को बड़ी बारीकी से पेश करती हैं। आप इतना सटीक ढंग से इसे कैसे प्रस्तुत कर पाते हैं?
यह रिसर्च का हिस्सा है। आप ऐसे ही कहानी के बारे में नहीं सोच सकते। आपको इस पर रिसर्च करनी होती है, लोगों से मिलकर उन्हें विश्वास में लेना होता है कि यह सबकुछ अच्छे के लिए ही किया जा रहा है। नाम शबाना को बनाने के लिए बहुत रिसर्च की गई और इसका नतीजा आप सभी के सामने है।
– इस फिल्म में दर्शकों को क्या देखने को मिलेगा?
टेलीविजन उन लोगों तक पहुंच बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है जो सिनेमाघरों में फिल्म नहीं देख पाए थे। अब चूंकि एंड पिक्चर्स पर इस फिल्म का ‘इंडिपेंडेंस वीक प्रीमियर‘ होने जा रहा है, तो मुझे उम्मीद है कि यह दर्शकों को पसंद आएगी। यह फिल्म हमारे मुख्य किरदार शबाना की जड़ों में झांकती हैं और एक जासूस की जिंदगी की गहरी समझ पेश करती है। इसमें उसकी भर्ती से लेकर उसकी ट्रेनिंग तक की जिंदगी है। मैं यह कहूंगा कि यह उन फिल्मों से बहुत अलग है जिन्हें देखने के हम आदी हो गए हैं।

 

 

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