रेलवे में बुनियादी सुधार करना चाहती हैं केंन्द्र सरकार

केंद्र सरकार रेलवे का मेकओवर करना चाहती है। मतलब यह कि वह उसमें बुनियादी सुधार कर उसे एक नया रूप देना चाहती है। बदलाव का ब्लूप्रिंट तैयार करने में विश्व बैंक मदद कर रहा है। वह इसके लिए 5 लाख करोड़ रुपये लगाने को तैयार है। इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य रेलवे का आधुनिकीकरण और डिजिटलाइजेशन है। इसके जरिए यात्रियों को तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी और माल ढुलाई की स्थिति को बेहतर बनाया जाएगा। इसके तहत एक रेलवे विश्वविद्यालय और रेल टैरिफ अथॉरिटी बनाने की भी योजना है। रेलवे की रिसर्च क्वॉलिटी सुधारने और तकनीकी जरूरतें पूरी करने के लिए वर्ल्ड बैंक नए रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट सेंटर के लिए अपनी विशेषज्ञ सेवाएं देगा।
रेलवे भारतीयों की जीवन रेखा कही जाती है, लेकिन आज भी रेलयात्रा संतोषजनक नहीं है। न तो यात्रियों की सुरक्षा की कोई गांरटी है, न ट्रेनों के समय से पहुंचने की, न स्वास्थ्यप्रद खानपान की, न साफ-सफाई की। सच कहा जाए तो भारतीय समाज में गरीब और अमीर का जो भीषण विभाजन है, वह भारतीय रेलवे में कुछ ज्यादा ही मुखरता से जाहिर हो रहा है। सरकारों ने संपन्न वर्ग को लुभाने के लिए कुछ अच्छी ट्रेनें चला दी हैं। उनका सारा ध्यान भी उन्हीं ट्रेनों पर रहता है, हालांकि उनकी हालत भी अच्छी नहीं रह गई है। सामान्य यात्रियों को देने के लिए बस इतना ही है कि यात्री किराया न बढ़ाया जाए, या कम बढ़ाया जाए। रेलवे राजनीति का एक टूल बनी हुई है। राजनीतिक लाभ के लिए इसमें मनमाने ढंग से नियुक्तियां हुई हैं। अनेक सेवाओं के लिए अपने चहेतों को ठेके दिए गए हैं, जिनसे रेलवे का कबाड़ा हो गया है। गाडिय़ां किसी तरह दौड़ा लेने के अलावा रेल प्रशासन कुछ भी नया कर पाने में अक्षम है। न तो खराब ट्रैक और पुलों का मरम्मत हो पा रहा है, न खानपान सेवा सुधर पा रही है, न स्टेशनों का ढंग से मेंटिनेंस हो पा रहा है, न ही बिना फाटक वाली रेल क्रॉसिंगों को हटाना संभव हो पा रहा है। ढुलाई में भी प्रफेशनल रवैया न हो पाने के कारण राजस्व में इजाफा नहीं हो पा रहा है। रेलवे को आमूल-चूल बदलने की जरूरत है।
लेकिन इसके लिए अब तक न तो कोई विजन दिखा है, न ही फंड। निजीकरण का एक तो विरोध होता है, दूसरे उससे कोई खास लाभ नहीं हो रहा। रेलवे का परिचालन औसत सुधारना ही बड़ी चुनौती है। पिछले बजट में इसे 96.9 फीसदी दिखाया गया। यानी रेलवे को अगर 100 रुपये की आमदनी हुई तो उसमें से परिचालन का खर्च निकालने के बाद मरम्मत, सुधार और कर्ज अदायगी के लिए सिर्फ तीन रुपये दस पैसे बचे। मेकओवर योजना में ध्यान रखना होगा कि पहले ऐसे प्रॉजेक्ट्स उठाए जाएं, जिनसे तत्काल रेलवे की आमदनी बढ़ सके। आधुनिकीकरण की आड़ में ऊपरी तामझाम पर पैसे बहाने का कोई अर्थ नहीं है।

 

Check Also

,क्या है अखिलेश यादव का ‘मिशन दक्षिण’,?

समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadva) आज से कर्नाटक (Karnataka) …