नई दिल्ली , 10 अगस्त । उत्तर प्रदेश के शिया वक्फ बोर्ड ने 71 साल बाद बुधवार को विवादित ढांचा पर मालिकाना हक के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की। निचली अदालत ने 30 मार्च 1946 को ढांचे को सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट 11 अगस्त 2017 से सुनवाई करेगा। अदालत में शिया बोर्ड की ओर से अपील दायर की गई है। बोर्ड की दलील है कि ट्रायल कोर्ट ने विवादित ढांचे को सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर बड़ी गलती की थी। क्योंकि वह एक शिया मुस्लिम द्वारा बनवाई गई थी। शिया वक्फ बोर्ड का कहना है कि विवादित ढांचे का निर्माण मीरबाकी ने कराया था और वो शिया मुस्लिम था। बोर्ड ने कहा कि बाबर महज पांच-छह दिन अयोध्या में रुका था, जबकि इसका निर्माण होने में समय लगा था। मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया। बोर्ड ने कहा कि शिया समुदाय द्वारा मस्जिद निर्माण के बाद उसकी देखरेख की गई, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने गलती से 1944 में इसमें सुन्नी वक्फ को शामिल कर दिया। फैजाबाद सिविल कोर्ट में 1945 में उसने याचिका दायर कर मस्जिद पर मालिकाना हक का दावा किया। दावे को निचली अदालत ने गलती से खारिज कर दिया, जबकि हकीकत में विवादित ढांचे पर मालिकाना हक शिया वक्फ का है। हलफनामे में शिया वक्फ बोर्ड ने यह भी कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड शांतिपूर्ण तरीके से इस विवाद का हल नहीं चाहता। हालांकि इस मसले को सभी पक्ष आपस में बैठकर सुलझा सकते हैं और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट उन्हें समय दे। इसके लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई जाए जिसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अगुआई में हाई कोर्ट के दो सेवानिवृत जज, प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी के अलावा और सभी पक्षकार भी शामिल हों। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों में बांटने का आदेश दिया था। उसने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में समान रूप से बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले के खिलाफ सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिस पर शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी।
राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि विवादित जमीन को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए। इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी। इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट में उसके बाद से ये मामला लंबित है।