*बीडीओ सुरेंद्र गुप्ता पर कार्यवाही कब तक?*

मालूम हो कि हरदोई जनपद में डीसी (एन आरएलएम) व खंड विकास अधिकारी अहिरोरी के पद पर कार्यरत सुरेंद्र कुमार गुप्ता द्वारा ग्राम विकास अधिकारी को सुविधा शुल्क के चलते बचाने का प्रयास किया गया। मालूम हो कि विकासखंड शाहाबाद की ग्राम पंचायत आगमपुर में मनरेगा व अन्य योजनाओं में किए गए भ्रष्टाचार की जांच के लिए कृष्ण मुरारी उर्फ पप्पू ने माननीय हाईकोर्ट में रिट याचिका संख्या 20165 /MB /2016, कृष्ण मुरारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य ,दायर की थी, जिसमें कराए गए सात कार्यों की तकनीकी जांच माननीय हाईकोर्ट के आदेश पर सहायक अभियंता लघु सिंचाई शैलेंद्र सिंह ने की थी। जिसमें ग्राम पंचायत के ग्राम विकास अधिकारी, प्रधान व जेई को 236967.66 रुपए (2 लाख 36 हजार 967 रुपए व 66 पैसे ) के गबन का दोषी पाया गया और दिनांक 30 अगस्त 2016 के पारित आदेश में माननीय हाईकोर्ट ने चार बिंदुओं पर आरोप पत्र पर विभागीय व विधिक कार्यवाही हेतु पूर्व जिलाधिकारी हरदोई विवेक वार्ष्णेय को आदेशित किया था।
*गौरतलब हो कि उक्त मामला आईने की तरह साफ था और दोषियों पर कार्यवाही हो जानी चाहिए थी, लेकिन चढ़ावा लेकर भ्रष्टाचारियों को बचाने का असली खेल यहां से शुरू हुआ*
तत्कालीन जिलाधिकारी विवेक वार्ष्णेय ने कार्यवाही हेतु उक्त आदेश तत्कालीन जिला विकास अधिकारी अभिराम त्रिवेदी को भेजा। जिस पर कार्यवाही करने के बजाय जिला विकास अधिकारी महोदय ने उपायुक्त स्वरोजगार यानी डीसी (एनआर एलएम) व बीडीओ अहिरोरी सुरेंद्र कुमार गुप्ता को पुनः जांच के लिए प्रकरण दे दिया गया। फिर वही खेल शुरू हुआ, जो एक भ्रष्ट अधिकारी करता है। *महत्वपूर्ण हो कि सुरेंद्र कुमार गुप्ता ने बड़ा चढ़ावा लेकर 236967. 66 रुपए के गबन को शून्य राशि पर ला दिया और आरोपियों को दोष मुक्त कर दिया लेकिन जब मामला शिकायतकर्ता के संज्ञान में आया और शिकायतकर्ता ने कोर्ट में शिकायत की तो अपनी गर्दन फंसती देख तत्कालीन जिलाधिकारी विवेक वार्ष्णेय ने डीसी (एन आरएलएम) व बीडीओ अहिरोरी सुरेंद्र कुमार गुप्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिस पर अपने को फंसता देख सुरेंद्र कुमार गुप्ता ने दोषी ग्राम विकास अधिकारी सर्वेश अग्निहोत्री पर जांच में सहयोग न करने व सारे अभिलेख ना देने का आरोप लगाते हुए 152536 रुपए के गबन की दूसरी जांच रिपोर्ट दे दी जोकि हाई कोर्ट द्वारा कराई गई जांच से 844 31.66 रुपए कम थी। गौरतलब हो कि पहले गबन की जांच में शून्य राशि उसी अधिकारी द्वारा वही जांच में जांच राशि गबन की बढ़ी। अब प्रश्न उठता है कि सुरेंद्र कुमार गुप्ता ने ग्राम विकास अधिकारी सर्वेश अग्निहोत्री द्वारा जांच में सहयोग ना दिए जाने की रिपोर्ट उत्तरोत्तर अधिकारियो को क्यों नहीं दी? और उनके खिलाफ विधिक कार्यवाही किए जाने की सिफारिश क्यों नहीं की?*
बहरहाल, मनरेगा के इस भ्रष्टाचार के ड्रामे के बीच जिलाधिकारी विवेक वार्ष्णेय का तबादला हो गया और जिले में तेज तर्रार जिलाधिकारी महोदया श्रीमती शुभ्रा सक्सेना की पोस्टिंग हो गई और उन्होंने भ्रष्टाचार के इस प्रकरण पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पूर्व जिला विकास अधिकारी अभिराम त्रिवेदी व दोषी सुरेंद्र कुमार गुप्ता को कारण बताओ नोटिस जारी कर संदेश दिया कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति देश व प्रदेश सरकार की मंशा के अनुसार, अपनाई जाएगी और इसी क्रम में कार्य शैली में निपुण नवागंतुक जिला विकास अधिकारी राजितराम मिश्रा ने दोषी ग्राम विकास अधिकारी सर्वेश अग्निहोत्री को निलंबित कर दिया है। अब सवाल यह उठता है कि जब माननीय हाईकोर्ट से दोषी करार भ्रष्टाचारियों को सुरेंद्र कुमार गुप्ता जैसे अधिकारी बचाएंगे तो आम इंसान इंसाफ के लिए कहां जाएगा? अब देखना यह है कि जिले की तेजतर्रार जिलाधिकारी महोदया उपरोक्त भ्रष्टाचार व उनको बचाने वाले भ्रष्ट अधिकारी सुरेंद्र कुमार गुप्ता पर क्या और कब तक कार्यवाही करती हैं? कार्यवाही के लिए प्रश्नगत यह रहेंगे कि क्या उपरोक्त भ्रष्टाचारियों से गबन की वसूली व विधिक कार्यवाही की जाएगी? क्या माननीय हाईकोर्ट में एक तकनीकी अधिकारी की दाखिल रिपोर्ट को पैसा लेकर बदलने वाले दोषी गैर तकनीकी अधिकारी डीसी (एनआरएल एम) व सुरेंद्र कुमार गुप्ता निलंबित होंगे और क्या उन पर माननीय हाईकोर्ट को गुमराह करने व भ्रष्टाचारियों को बचाने के मामले में एफ़आईआर दर्ज होगी? यह भी बड़े अनुत्तरित सवाल हैं या फिर गबन के हवन में साहब ,सेक्रेटरी और वे सब मौज करते रहेंगे? यह भविष्य के गर्त में है।