इस लोकसभा चुनाव में,सभी चेहरे एक के बाद एक अपना वक्तव्य देते,देखे जा रहे हैं कोई दलित वोट बैंक की राजनीति में व्यस्त है,तो कोई “गठबंधन-गठबंधन” का राग अलाप रहा है l कहीं हैं समाजवादी पार्टी के नेता,अखिलेश यादव,जयंत चौधरी की तरफ जाते दिख रहे हैं,तो कहीं जयंत चौधरी एनडीए की ओर रुख करते नजर आ रहे हैं lइस बीच राजनीतिक कशमकश के बीच एक चेहरा ऐसा है,जो काफी समय से खामोश बैठा हुआ है l वह चेहरा कोई और नहीं बल्कि,बीजेपी के “फायर ब्रांड नेता” और “पीलीभीत” से “सांसद वरुण गांधी” हैं l वरुण जनता के मुद्दों को उठाने के लिए,अपनी ही पार्टी से बगावत लेने में माहिर माने जाते हैं,लेकिन पिछले कई दिनों से वरुण खामोश है l वरुण की खामोशी की,यूं तो कई वजह हो सकती हैं , लेकिन असली वजह,”इंडिया जंक्शन” आपको बताएं,उससे पहले यह जान लीजिए,कि “वरुण” और “मेनका” के लिए बीजेपी ने हमेशा से ही कोई खास जगह नहीं रखी है l भले ही दोनों हिंदुओं की बातों को लगातार समय-समय पर उठाते रहे हो या फिर जनता के अन्य मुद्दे संसद में बयां किए हो, लेकिन ऐसा क्या हो गया ?जो वरुण खामोश हो गए l इन बातों की रोशनी के लिए जरा,”फ्लैशबैक” में चलना होगा l
जब “वरुण” की मां मेनका गांधी का बीजेपी से भ्रम टूटा था,तो वरुण की मां मेनका ने निर्दलीय ही चुनाव लड़ा था l वरुण गांधी इन दिनों हो सकता है,कि इसलिए भी चुप हो हो ,कि बीजेपी से उनका मन भर चुका हो या फिर बीजेपी की रणनीतियों से वरुण डर गए हो,क्योंकि बीजेपी का इतिहास है कि,बगावत करने वाला कोई भी नेता बीजेपी में खास जगह नहीं बना पाया है l बीजेपी के एक नहीं कई नेता ऐसे हैं,जिनको बगावत के बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया गया lताजा उदाहरण के तौर पर “स्वामी प्रसाद मौर्या” को ही देख लीजिए lइसके अलावा पहले भी बीजेपी के तमाम “दिग्गज नेता” जिनमें विनय कटियार,कलराज मिश्र,कल्याण सिंह और उसके बाद ना जाने कितने ऐसे नेता हैं,जिनको प्रदेश में ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया,तो वही उत्तर प्रदेश से बाहर केंद्र की राजनीति में अगर नजर डालें तो मुरली मनोहर जोशी सहित कई बड़े नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया l बात अगर “लालकृष्ण आडवाणी” की जाए,तो सभी को मालूम है कि आडवाणी जी को भी बीजेपी ने किनारे कर रखा है lऐसे में इतने बड़े-बड़े नेताओं को साइडलाइन देखने के बाद,वरुण के अंदर बीजेपी खिलाफत करने का डर बैठा हुआ है या यह भी हो सकता है,कि अखिलेश के गले लगने वाले वरुण खामोशी के साथ सपा में शामिल हो जाने की फिराक में हो,यानी “वरुण” की “खामोशी” की तमाम वजह हो सकती हैं ,क्योंकि 2024 के इलेक्शन में बदले निजाम का बदला नजारा देखने के लिए वरुण की बदली रणनीति क्या होगी ?यह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल बनकर रह गया है